पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/४१४

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड । प्रकट रूप से हँसने में लोक लज्जा नष्ट होती, माताओं की मर्यादा के ख्याल से चतु- राई के साथ हँसी छिपा कर मन में हँसना 'अवहित्य सञ्चारी भाव' है। चौ-देव पितर पूजे बिधि नीकी। पूजी सकल बासना जी की। सबहिँ बन्दि माँगहिँ अरदाना । भाइन्ह सहित राम कल्याना ॥१॥ देवता और पितरा की अच्छी तरह पूजा की, मन की सभी कामनाएं पूरी हुई। सब को प्रणाम कर के भाइयों के सहित रामचन्द्रजी के कल्याण का बरदान माँगती हैं ॥१॥ अन्तरहित सुर आसिष देही । मुदित मातु अञ्चल भरि लेही । भूपति बोलि बराती लीन्हे । जान बसन मनि भूषन दीन्हे ॥२॥ देवता अन्तरिक्ष से शाशीर्वाद देते हैं और माताएँ प्रसन्नता से आँचर भर कर लेती हैं। राजा ने बारातियों को बुलवा लिया, उन्हें रथ, वस्त्र, मणि और आभूषण दिये ॥२॥ आशीर्वाद कोई ऐसा पदार्थ नहीं है जिसको माता लोग आँचर पलार कर लेती हैं। मुख्यार्थ का बोध है, परन्तु वाक्य जगत्प्रसिद्ध बोलचाल में व्यवहत होने से 'सदि लक्षणा' है। आयसु पाइ रोखि उर रामहि । मुदित गये सब निज निज धामहि । पुर नर नारि सकल पहिराये । घर घर बाजन लगे बधाये ॥३॥ आशा पा कर रामचन्द्रजी को हृदय में रख कर सव प्रसन्नता-पूर्वक अपने अपने मन्दिर को गये। नगर के समस्त स्त्री-पुरुषों को राजा ने वस्त्रादि पहनाये, घर घर आनन्द की वधा- इयाँ बजने लगी ॥an जाचक-जन जाचहिँ जोइ जाई । प्रमुदित राउ देहिँ सोइ सोई ॥ सेवक सकल बजनियाँ नाना । पूरन किये दान सनमाना ॥४॥ याचक लोग जो जो माँगते हैं, राजा प्रसन्न हो कर वही वहीं देते हैं । समस्त सेवक और बाजेवालों को नाना प्रकार के दान एवम् सम्मान से सन्तुष्ट किया ॥ ४॥ दो-देहि असीस जोहारि सब, गावहिँ गुन-गन-गाथ । तब गुरु भूसुर सहित गृह, गवन कीन्ह नरनाथ ॥ ३५१ ॥ सब प्रणाम कर के आशीर्वाद देते हैं और समूह गुणों को कथा गावे हैं ! तव गुरु और ब्राह्मणों के सहित नरनाथ दशरथजी ने महल में गमन किया ॥ ३५ ॥ चौ०-जो बसिष्ठ अनुसासन दीन्हा । लोक बेद बिधि · सादर कीन्हा । भूसुर भीर देखि सब रानी । सादर उठौं भाग्य बड़ जोनी ॥१॥ वशिष्ठजी ने जो आशा दी, लोक और वेद के विधान से आदर के साथ राजा ने उसे किया। ब्राह्मणों की भीड़ देख कर सब रानियाँ अपना बड़ा भाग्य समझ कर पादर के साथ रठी॥१॥