पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/४१६

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड । ३५७ बहुरि बोलाइ सुआसिनि लीन्ही । रुचि बिचारि पहिरावनि दीन्ही ॥ नेगी. नेग-जोग सब लेही । रुचि अनुरूप भूप-मनि देहाँ ॥३॥ फिर सुहावनी स्त्रियों को बुलवा लिया, उनकी रुचि समझ कर पहिरावनी दी । नेगी लोग सब नेगयोग लेते हैं, उनकी इच्छा के अनुसार राजाओं के मणि (दशरथजी) देते हैं ॥३॥ प्रिय पाहुने पूज्य जे , जाने । भूपति भली भाँति सनमाने । देव देखि रघुबीर बिबाहू । बरषि प्रसून प्रसंससि उछाहू ॥४॥ जो प्रिय मेहमान थे उन्हें पूजनीय जान कर राजा ने अच्छी तरह सम्मान किया । देवता गण रघुनाथजी का विवाह देख फूल बरसा कर उत्साह की प्रशंसा करते हैं ॥en दो०-चले निसान बजाइ सुर, निज निज पुर सुख पाइ । कहत परसपर राम-जस, प्रेम न हृदय समाइ ॥३३॥ देवतावृन्द प्रसन्न हो कर अपने अपने लोकों को डडा बजा कर चले । आपस में राम- चन्द्रजी का यश कहते जाते हैं, उनके हृदय में प्रेम समाता नहीं (उमड़ा पड़ता) है ॥३३॥ चौ.-सब विधि सबहि समदि नरनाहूं। रहा हृदय भरि पूरि उछाहू ॥ जहँ रनिवास तहाँ पगुधारे। सहित बधूटिन्ह कुँअर निहारे ॥१॥ राजा दशरथजी ने सब प्रकार सब का सम्मान किया और उनके हृदय में भरपूर उत्साह उमड़ रहा है। जहाँ रनिवास है वहाँ गये और बहुओं समेत कुवरों को देखा ॥१॥ लिये गोद करि मोद समेता । को कहि सकई भयउ सुख जेता । बधू सप्रेम गोद बैठारी । बार बार हिय हरषि दुलारी ॥२॥ प्रसन्नता पूर्वक पुत्रों को गोद में कर लिये, उस समय उन्हें जितना सुख मुश्रा वह कौन कह सकता है ? पताओं को प्रीति के साथ गोदी में बैठा कर बार बार हर्षित हृद्य से उनका दुलार (प्यार) किया ॥२॥ देखि ,समाज मुदित रनिवासू । सब के उर अनन्द किय बासू ॥ कहेउ भूप जिमि भयउ बिबाहू । सुनि सुनि हरष हाइ सब काहू ॥३॥ समाज (पुत्र-पुत्रवधू आदि ) को देख कर रनिवास श्रानन्दित है, सब के प्रसन्नता ने निवास किया है । जिस तरह विवाह हुआ था राजा ने कहा, सुन सुन कर सब को हर्ष हो रहा है ॥३॥ जनकराज गुन सोल बड़ाई । प्रोति रीति सम्पदा सुहाई ॥ बहु बिधि भूप भाट जिमि बरनी। रानी सघ प्रमुदित सुनि करनी ॥४॥ राजा जनक के गुण, शील, प्रेम, चालचलन और सुन्दर सम्पत्ति की बड़ाई बहुत तरह से राजा भाट जैसे वर्णन किया, जनकजी की करनी सुन कर सब रानियाँ बहुत प्रसन्न हुई। हृदय में