पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/४१९

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। , ३६० हरामनरित मानस। बिस्व-विजय-जल जानकि पाई। आये भवन ब्याहि सब भाई ॥ सकल अमानुष करम तुम्हारे । केवल कैासिक कृपा सुधारे ॥३॥ विश्व विजय यश के सहित जानकी को पाया और संच भाइयों को व्याह कर घर आये। आप के सम्पूर्ण कर्म अमानुषिक (मनुष्य की शक्ति से बाहर) हैं, केवल विश्वामित्रजी ने कृपा कर के सुधारा है ॥३॥ संसार के जीतने का यश इसखिये मिला कि जानकी को पाने के लिये तीनों लोकों के भट पराक्रम कर हार गये । अन्त में रामजन्द्रजी ने धनुष तोड़ डाला तब विश्व-विजय के साथ सीताजी को पाया। आजु सुफल जग जनम हमारा। देखि तात विधु-बदन तुम्हारा ॥ जे दिन गये तुम्हहिँ बिनु देखे । ते बिरचि जनि पारहिँ लेखे ॥४॥ हे पुत्र ! आज तुम्हारा चन्द्र-मुख देख कर हमारा संसार में जन्म लेना सफल हुआ। जो दिन श्राप को बिना देखे बीते हैं, उनको ब्रह्मा गिनती में न लावें ॥४॥ दो-राम प्रतोषी मातु सब, कहि बिनीत बर बैन सुमिरि सम्भु-गुरु-बिन-पद, किये नींद-बस नैन ॥ ३५ ॥ रामचन्द्रजी ने नन्नतापूर्वक श्रेष्ठ वचन कह कर सब माताओं को सन्तुष्ट किया। शिवजी, गुरु और प्राहाण के चरणों का स्मरण कर नेत्रों को नीद-वश किया ॥ ३५७ ॥ चौ...लौदहु बदन साह सुठि लोना । मनहुँ साँझ सरसीरुह सेना ॥ घर घर करहिं जागरन नारी । देहि परसपर मङ्गल नौद में भी अत्यन्त सुहावना श्रीमुख शोभित है, वह ऐसा मालूम होता है मानो सन्ध्या- काल में कमल का सूतना (सङ्कुचित होना) हो। घर घर स्त्रियाँ जागरण करती हैं और एक दूसरी को मङ्गलमयी गालियाँ देती हैं ॥१॥ पुरी बिराजति राजति रजनी । रानी कहहि बिलोकहु सजनी ॥ सुन्दर बधू सासु लेइ साई । फनिकन्ह जनु सिर-मनि उर गाई ॥२॥ रानी कहती है-हे सजनी ! देखो, अयोध्यापुरी की सजावट से रात बहुत ही सुहावनी लगती है । सुन्दर बहुओं को लेकर सासु सोई है, वे ऐसी मालूम होती हैं मानों सर्प अपने सिर की मणियों को हृदय में छिपा कर सोये हो ॥२॥ प्रात पुनीत-काल प्रनु जागे । अरुनचूड़ बर बोलन लागे । बन्दि भागधन्ह गुन-गन गाये । पुरजन द्वार जोहारन आये ॥३॥ सबेरे पवित्र काल (बाझ मुहूर्ग) में प्रभु रामचन्द्रजी जागे और मुर्गे बोलने लगे । बन्दी. जन और मागध गुणावली गाने लगे तथा नगर के लोग दरवाजे पर प्रणाम करने को आये ॥३॥ गारी ॥१॥