पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

... ... (शहीद ब माफिह जलाल मकबूली बखतही) (शहीद ब माफिहताहिर इवन खाजे दौलते कानूनगोय) मुहर सादुल्लाह बिन... किस्मत आनन्दराम 'किस्मत कन्हई करिया करिया करिया करिया भदैनी दो हिस्सा लहरतारा दरोबिस्त ‘भदैनी सेह हिस्सा शिवपुर दोविस्त करिया करिया नेपुरा हिस्सै टोडर तमाम नदेसर हिल टोडर तमाम करिया अन्हरूला (श्ररूपष्ट) चितपुरा खुर्द हिस्सै टोडर तमाम परलोक गमन । यह दोहा प्रसिद्ध है- सम्वत् सोरह से असी, असी गङ्ग के तीर । श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी तजे शरीर ॥ अर्थात् मि० श्रावण शुक्ल ७ सम्बत् १६८० को गंगाजी के अल्सीघाट पर गोस्वामी तुलसी- दालजी ने शरीर त्याग किया। कवि रामायण में गोसाँईजी ने लिखा है कि-"बीसी विश्वनाथ की विपाद बड़ा बारानसी, बूझिये न ऐसी भत्ति शङ्कर सहर की । शङ्कर सरोष महामारिहि ते जानि- यत, साहिब सरोष दुनी दिन दिन दारिदी।" इन पद्यों से विदित होता है कि काशी में महामारी फैली थी, उस समय रुद्रबीसी भाग रही थी। ज्योतिष की गणना से वह समय लम्वत् १६६५ से १६८५ तक का निकलता है। इसी के आधार पर डाक्टर निबर्सन ने अनुमान किया है कि अन्त समय में गोसाँईजी महामारी से पीड़ित हुए थे, उनकी कान में गिलटो निकल आई थी और ज्वर भी हुआ था। परन्तु आधकांश जीवनी लेखक प्रियर्सन साहब के इस तर्क से सहमत नहीं हैं, वे कहते हैं अन्त समय में गोसाँईजी को कदापि प्लेग की बीमारी नहीं हुई थी। वादशाह जहाँगीर के बनवाये चित्र में सद्यः रोगमुक्त होने का चिह्न वर्तमान है और वह सम्वत १६६५ और १६६६ के बीच गोसाँईजी से मिलने काशी आया था । सम्भव है कि उस समय वे महामारी से प्रसित होकर अच्छे हुए हो जिसे सुन कर स्नेहवश बादशाह उन्हें देखने आया था। जो हो, पर अन्त समय में गोसाँई जी को महामारी नहीं हुई थी। जब स्वर्गारोहण का समय समोप आया, तब वे गहाजी के तट पर जा बालीन हो रामनाम जाप करने लगे । ठीक यात्रा के समय यह दोहा कह कर परमधाम सिधारे। रामनाम जस बरनि के, भयउ चहत अब मौन । सुलसी के मुख दीजिये, अबही तुलसी सेन ॥ गोस्वामीजी के ग्रन्थ । इनके ग्रन्थों की संख्या में भी बड़ा मतभेद है । हिन्दी-नवरत्न में मिश्रबन्धुओं ने २५ प्रथ, तुलसी जीवनी के लेखक ने ३१ अन्य; शिवसिंह सरोज ने २२ ग्रन्थों की गणना की है। फणेश कवि और महामहोपाध्याय पण्डित सुधाकर द्विवेदी आदि विद्वानों ने भिन्न भिन्न संख्यायें निर्धारित की ३