पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/४२०

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॥ . प्रथम सोपान, शालकाण्ड । बन्दि विप्र सुर गुरु पितु माता । पाइ असीस मुदित सब भाता ॥ जननिन्ह सादर बदन निहारे। भूपति सङ्ग द्वार पण धारे ॥१॥ ब्राह्मण, गुरु, देवता, पिता और माताशों को प्रणाम कर सब भाई आशीर्वाद पा कर प्रसन्न हुए । माताओं ने आदर से मुख देखा, फिर राजा के लाध दरवाजे पर पधारे ॥ दो०-कीन्ह सोच सब सहज सुचि, सरित पुनीत नहाइ । प्रातक्रिया करि तात पहि, आये चारिउ आइ ॥ ३५ ॥ स्वाभाविक पवित्र चारों भाई सब शौच से निवृत्त हो पवित्र नदी (सरयू) में स्नान किया और प्रातःक्रिया करके पिता के पास श्राये ॥ ३५ ॥ शौचकर्म स्नानादि पवित्रता के लिए किया जाता है, पर चारों भाई सहज ही शुद्ध है। किया का अभिप्राय विशेष्यपद में वर्तमान रहना 'परिकराङ्कुर अत्तंकार' है। चौ०-भूप विलोकि लिये उर लाई । बैठे हरषि रजायसु पाई। देखि राम सब सभा जुड़ानी । लोचन लाभ अवधि अनुमानी ॥१॥ राजा देख कर हदय से लगा लिये, श्राज्ञा पाकर चारों भाई प्रसन्न होकर बैठ गये। राम- चन्द्रजी को देख कर सारी सभा नेत्रों के लाभ की लोमा अनुमान कर शीतल हुई ॥ १॥ पुनि बसिष्ठ मुनि कैासिक आये। सुभग आसनन्हि मुनि बैठाये ॥ सुतन्ह समेत पूजि पग लागे । निरखि राम दोउ गुरु अनुरागे ॥२॥ फिर वशिष्ठ मुनि और विश्वामित्रजी आये, राजा ने मुनियों को सुन्दर श्रासन पर वैठाया । पुत्रों सहित पूजा कर के चरणों में लगे, रामचन्द्रजी को देख कर दोनों गुरु प्रम से पूर्ण हो गये ॥२॥ कहहिँ बसिष्ठ धरम इतिहासा। सुनहि महीस सहित रनिवासा । मुनि मन अगम गोधि सुत करनी। मुदित बसिष्ठ बिपुल विधि शरनी ३॥ वशिष्ठजी धार्मिक इतिहास कहते हैं और राजा रनिवास के सहित सुनते हैं। सुनियों के मन में दुर्गम विश्वामित्रजी की करनी को वशिष्ठजी ने बहुत तरह से प्रसन्नतापूर्वक वर्णन किया ॥३॥ बोले बामदेव सब साँची । कीरति कलित लोक तिहुँ माँ थी। सुनि आनन्द अयउ सब काहू । राम-लखन-उस अधिक उछोहू ॥४॥ वामदेव मुनि बोले कि सब बातें सत्य हैं, इनकी सुन्दर कीर्ति तीनों लोकों में फैली हुई है। यह सुनकर सब को आनन्द हुआ और रामचन्द्रजी- तथा, लक्ष्मणजी के गुटका में 'राम लखन उर अतिहि उछाह पाठ है। हृदय में बड़ा उत्साहाचा ॥४॥