पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/४२३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२६४ रामचरित मानस । आये ब्याहि राम घर जन तें। बसे अनन्द अवध सब तब ते 11 प्रभु बिबाह जस भयउ उछाहू । सकहिं न वरनि गिरा अहिनाहू ॥३॥ जब से रामचन्द्रजी विवाह करके घर आये, तब से अयोध्या में सव आनन्द से निवास करते हैं । प्रभु रामचन्द्रजी के विवाह में जैसा उत्साह हुआ, उसको सरस्वती और शेषजी भी नहीं वर्णन कर सकते ॥३॥ कशि-कुल-जीवन पावन जानी। राम-सीय-जस मंगल-खानी ॥ तेहि तैं मैं कछु कहा बखानी । करन पुनीत हेतु निज वानी ॥१॥ राम-जानकी के यश को मङ्गल की खानि और कवि कुल के जीवन को पवित्र करने. वाला जान कर, इसलिए मैंने अपनी वाणी पावन करने के हेतु कुछ बखान कर कहा है ॥३॥ कविजी कहते हैं कि मैंने कुछ रामयश वर्णन किया, इसका समर्थन हेतु-सूचक बात कह कर करना कि सीताराम को यश मङ्गाल की खानि है, कविकुल के जीवन को पवित्र करने. धाला है, इससे मैंने अपनी जिह्वा पवित्र करने के लिए कहा 'काव्यलिंग अलंकार' है। १ हरिगीतिका-छन्द। निज गिरा पावनि करन कारन, राम-जस तुलसी कह्यो। रघुबीर चरित अपार बारिधि, पार कबि कवने लह्यो । उपबीत ब्याह उछाह मङ्गल, सुनि जे सादर गावहीँ। वैदेहि राम-प्रसाद तें जन, सर्बदा सुख पावहीं ॥१७॥ अपनी वाणी पवित्र करने के लिए तुलसी ने रामचन्द्रजी का यश कहा । रघुनाथजी का चरित्र पार समुद्र है, किस कवि ने पार पाया है ? (कोई नहीं)। यसोपरीत और विवाहो- रसव के माल को ओआदर से सुनेंगे एवम् गावैगे, वे मनुष्य राम-जानकी की कृपा से सदा सुख पावेंगे ॥४॥ पहले कहा कि अपनी वाणी पवित्र करने के लिए तुलसी ने रामचरित वर्णन किया। फिर उसका निषेध कर के दूसरी बात कहना कि रामचरित अपार समुद्र है किसी कवि ने पार नहीं पाया 'एकाक्षेप अलंकार' है। H 1