पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/४२८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

द्वितीय सोपान, अयोध्याकाण्ड । राजापुर की प्रति में 'सकल-सुकृत-भूरति नरना।. राम सुजस मुनि अतिहि उछाहू' यह श्राधी चौपाई नहीं है, किन्तु गुटका और सभा की प्रति में है। जान पड़ता है कि नकल करने में वह छूट गई है। नृप सब रहहिँ कृपा अमिलोखे । लोकप करहिं प्रीति रुख राखे । तिभुवन तीनि काल जग माहीं। भूरि-भाग दसरथ सम नाहीं ॥२॥ सब राजा जिनकी कृपा के श्राफांक्षी रहते हैं और लोकपाल जिनके प्रीति को रुख रख कर काम करते हैं। तीनों लोक और तीनों काल में दशरथजी के समान पहा भाग्यवान संसार में कोई नहीं है ॥२॥ मङ्गल-मूल राम सुत जासू । जो कछु कहिथ थोर सब तासू ॥ राय सुभाय मुकुर कर लीन्हा । बदन बिलोकि मुकुट सम कीन्हा ॥३॥ माल के मूल रामचन्द्रजी जिनके पुत्र हैं, उनके लिये जो कुछ कहा जाय वह सब थोड़ा है। राजा ने स्वभाव से ही हाथ में दर्पण लिया और मुख देख कर मुकुट सीधा किया ॥३॥ सवन सभीप भये सित केसा । मनहुँ जरठ-पन अस उपदेसा। नृप जुबराज राम कह देहू । जीवन जनम लाहु किन लेहू ॥४॥ कान के समीप बाल सफेद हो गये हैं, वे ऐसे मालूम होते हैं मानों बुलाई अवस्था उपदेश दे रही है-राजन् ! रामचन्द्रजी को युवराज-पद देकर अपने जन्म और जीवन का साम क्यों नहीं लेते ? hem बुढ़ाई में बालों का पकना सिद्ध आधार हैं; किन्तु बाल मुखवाले जीव नहीं जो शिक्षा दे सकते हैं। । इस अहेतु में हेतु की कल्पना करना 'सिद्धविषया हेतूमेक्षा अलंकार' है देश-यह बिचार उर आनि नप, सुदिन सुअवसर पाइ । प्रेम-पुलकि-तन मुदित मन, गुरुहिँ सुनायउ जाइ ॥२॥ यह विचार मन में ला कर सुन्दर दिन -और शुभ-मुह पा कर राजा प्रेम से पुलकित शरीर और प्रसन्न मन से जा कर गुरुजी को सुनाया ॥२॥ चौध-कहइभुआल सुनिय मुनिनायक । भयेराम सब-बिधि सब-लायक ॥ सेवक सचिव सकल पुरबासी । जे हमार अरि मित्र उदासी ॥१॥ राजा कहने लगे-हे मुनिराज सुनिए, रामचन्द्रजी सब तरह योग्य हुए हैं। नौकर, मन्त्री और सम्पूर्ण नगर निवासी जो हमारे शत्र, मिन तथा तटस्थ हैं ॥१॥ गुटको और सभा की प्रति में 'जे हमरे अरि मित्र उदासी' पाठ है। सबहिँ राम प्रिय जेहि बिधि माही। प्रभु असीस जनु तनु धरि साही। बिप्र सहित परिवार गोसाँई। करहि छोह सब रौरहि नाँई ॥२॥ जिस प्रकार रामचन्द्र मुझे प्यारे हैं उसी तरह सभी को प्रिय हैं, प्रभो ! ऐसा मालूम