पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/४३३

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रामचरित मानस । मुख्य तात्पर्य तो रनिवास की खुशी वर्णन से है । उसका भाव हृदयङ्गम करने के लिए कविजी अपनी कल्पना से वल-पूर्वक पाठकों का ध्यान समुद्र की उस तरङ्गमाला की ओर खींच फर लिये जाते हैं जो पूर्णचन्द्र को देख कर उसमें लहराती हुई उठती हैं । "उक्तविषया वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार' है। चौ०-प्रथम जाइ जिन्ह बचन सुनाये । भूषन बसन भूरि तिन्ह पाये ॥ प्रेम पुलकि तन मन अनुरागी । मङ्गलकलस सजन सब लागी ॥१॥ पहले जा कर जिन्होंने यह बात सुनाई, उन्हें बहुत से गहने और कपड़े मिले । प्रेम से पुलकित शरीर हो मन मै उमड़ पड़ा, सब माल-कलश सजाने लगी॥१॥ चौकई चारु सुमित्रा पूरी । मनिमय विविध भाँति अति सरी । ॥ आनंद-मगन राम-महतारी । दिये दान बहु विप्र हँकारी ॥२॥ ॥ सुमिनाजी ने अनेक तरह की बहुत ही सुन्दर मणियों की मनाहर चाकें पूरी । राम. चन्द्रजी की माता आनन्द मग्न हो याह्मणों को बुलवा कर बहुत से दान दिये ॥२॥ पूजी ग्रामदेबि-सुर-नागा । कहेउ बहारि देन बलि भागा। जेहि विधि होइ शम कल्यानू । देहु दया करि सो बरदानू ॥३॥ गाँव की देवी, देवता और नागों की पूजा करके फिर पूजा करने की मनौती की कि जिस तरह रामचन्द्रजी का कल्याण हो या करके वही वरदान दीजिए ॥३॥ गावहिँ मङ्गल कोकिल-बयनी । विधु-बदनी 'मृग-सावक-नयनी ॥४॥ चन्द्राननी, हिरन के बच्चों के समान नेत्रधाली स्त्रियाँ कोकिल की वाणी में माल गीत गाती हैं ॥४॥ दो-राम राज-अभिषेक सुनि, हिय हरये नर-नारि । लगे सुमङ्गल सजन सब, बिधि अनुकूल बिचारि ॥८॥ रामचन्द्रजी के राज्याभिषेक को सुन कर स्त्री-पुरुष हृदय में हर्षित हुए। विधाता को प्रसन्न समझ कर सुन्दर महल सजने लगे। चौ--तब नरनाह बसिष्ठ बोलाये । राम-धाम सिख देन पठाये ॥ गुरुंआगमन सुनत्त रघुनाथा । द्वार आइ पद नायउ माथा ॥१॥ तप राजा ने वशिष्ठजी को बुलाया और रामचन्द्रजी के महत्त में उन्हें शिक्षा देने के लिए भेजा | गुरु का आगमन सुनते ही रघुनाथजी ने दरवाजे पर श्रा कर उनके चरणों में मस्तक नवाया ॥१॥ सादर अरघ देइ घर आने । सोरह भाँति पूजि सनमाने ॥ गहे चरन सिय-सहित बहारी । बोले राम कमल-कर जोरी ॥२॥ आदर के साथ अर्घ्य दे कर घर में ले आये और सोलहों भाँति से पूजा कर के सम्मान