पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/४३६

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द्वितीय सोपान, अयोध्याकाण्ड । ३७७ कनक सिंघासन सीय समेता । बैठहिँ राम होइ चित चेता ॥ सकल कहहिँ कब होइहि काली । बिधन मनावहिं देव कुवाली ॥३॥ सुवर्ण के सिंहासन पर सीताजी के सहित रामचन्द्रजी बैठ जाय, तब चितचाही बात पूरी हो । सम्पूर्ण (अयोध्यावासी) कहते हैं कि कब कल का सबेरा होगा और कुचाली देवता वित मनाते हैं ॥३॥ तिन्हहि सोहाइन अवध बधावा । चारहि चन्दिनि राति न भावा॥ सारद बोलि बिनय सुर करहीं। बारहिँ बार पाँय ले परहीं ॥४॥ उन्हें अयोध्या में श्रानन्द की दुन्दुभी बजना अच्छा नहीं लगता है, (जैले ) चार को चाँदनी रात नहीं सुहाती । सरस्वतीजी का आवाहन कर के देवता बिनती करते हैं और बार बार उनके पाँव ले पड़ते हैं ॥४॥ चौपाई के पूर्वाद्ध में प्रथम उपमेय वाक्य है और द्वितीय उपमान-वाक्य है । 'सोहाइ न' और 'न भावा' एक धर्म पृथक पृथक समानार्थ वाची शब्दों द्वारा कथन करना प्रतिवस्त- पमा अलंकार' है । देवताओं को अयोध्या का प्रधाना न सुहाना, उपमेय वाक्य है और चोर को चाँदनी रात का न भाना उपमान वाक्य है। बिना वाचक पद के दोनों वाक्यों में बिम्बप्रति- विम्ब भाव झलकना अर्थात् अयोध्या का बधाषा देवताओं को उसी तरह अच्छा नहीं लगता जैसे चोर को चाँदनी रात, इष्टान्त अलंकार है। यहाँ दोनों अलंकारों का सन्देह सङ्कर है। दो-बिपत्ति हमारि बिलोकि बड़ि, मातु करिय सोइ आजु । राम जाहि बन राज तजि, होइ सकल सुर काज ॥११॥ हे माता! हमारी बड़ी विपत्ति को देख कर नाज वहीं कीजिये कि रामचन्द्रजी राज्य को छोड़ कर धन को जाँय तो सम्पूर्ण देवताओं का कार्य सिद्ध हो ॥११॥ चौ०-सुनिसुर-बिनयठाढि पछिताती। अइउँ सरोज-बिपिन हिम-राती। देखि देव पुनिकहहिं निहोरी । मातु ताहि नहिं थोरिउ खोरी॥१॥ देवता की विनती सुन कर सरस्वती खड़ी होकर पछताती हैं कि मैं कमल वन के लिए पाले की रात हुई हूँ। उनका पछताना देखकर देवता उपकार जनाते हुए फिर कहते हैं कि हे माता ! आप को थोड़ा भी दोष न लगेगा ॥१॥ सरस्वतीजी को रामराज्याभिषेक में बाधा डालने का पश्चाताप होना प्रस्तुत वृत्तान्त है । उसे न कह कर यह कहना कि कमल-वन के लिए पाले की रात बनूंगी अर्थात् प्रतिबिम्ब मात्र कथन कर के असली वृत्तान्त प्रकट करनी ललित अलंकार है। बिसमय हरष रहित रघुराज । तुम्ह जानहु सब राम प्रभाऊ ॥ जीव करम-बस सुख-दुख-भागी । जाइयं अवध देव-हित-लागी ॥२॥ रघुनाथजी शोक और हर्ष से रहित हैं, आप सब तरह रामचन्द्रजी के प्रभाव को जानती