पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/४४

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} (१६) (६) रामाज्ञा-प्रश्नावली-इसमें सात सर्ग हैं और प्रत्येक सग में ४६-४8 दोहे हैं ! लात सात दोहों का एक एक सप्तक है। प्रति सर्ग सात सात सप्तक के हैं। रामायण के सात कांड की कथा का वर्णन है। इस ग्रन्थ को गोसाँईजी ने शगुन बिचारने के लिये बनाया था और इससे शगुन का उत्तर बहुत यथार्थ निकलता है। इसमें सब ३४३१ दोहे हैं । (७) दोहावली-इसमें राजनीति, समाजनीति, धर्मनीति, वेदान्त, नाम महिमा और कलि की कुटिलता आदि का वर्णन है। इसकी रचनाशैली से प्रकट होता है कि गोसाँईजी ने समय समय पर जो दोहा और सोरठा कहा था, ग्रन्ध का रूप देते समय उनका संग्रह किया है। इसमें कितने ही दोहे रामचरितमानस के यथा-तथ्य उद्धृत किये गये हैं। सक्ष ५७३ दे।हे सोरठे हैं। () कवित्त रामायण-यह अन्य घनाक्षरी, सवैया, झूलना और छप्पै छन्द्रों में पूरा हुना है। इसकी रचना वैसवाड़ी मिश्रित ब्रजभाषा में हुई है। इसके छन्द भी समय समय पर बने थे और वे ही पीछे ग्रन्थ के रूप में किये गये हैं। सातो कांड ३६६ कवित्तों में पूर्ण हुए हैं, हनुमान बाहुक भी इसी के अन्तर्गत है। उत्तरकांड में अपनी दीनता प्रदर्शित करने के लिये गोसाँईजी ने अपने सम्बन्ध में बहुत हो तुच्छता दिखायी है, उसके आधार पर कतिपय चरित्र-लेखकों ने तरह तरह के अनुसान बाँध कर उन्हें जन्म का दरिद्री ठहराया है। (8) गीतावली रामायण-इसकी रचना ब्रजभाषा में हुई है और बड़ी ही मधुर तथा कर्ण-सुखद है । वर्णन राग रागिनियों में सर्वथा स्वोभाविक और हृदयनाही है। रामायाण के सातों कोडो की कथा माधुर्य पूर्ण गान की गयी है। इसमें सब ३३१ पद हैं । (१०) कृष्णगीतावली श्रीकृष्णचन्द्र भगवान का गुण व्रजभाषा के ६१ पदों में गान किया गया है। इसकी रचना माधुर्यमान-पूर्ण है। (११) रामचरित मानस रामायण-रामायण को कौन नहीं जानता ? इस लोकोपकारी अनुपम अन्य की गोसाँईजी ने मि० चैत्र शुक्ल मङ्गलवार सम्बत १६३१ में निर्माण करना आरम्भ किया। इसका नाम गोस्वामी जी ने 'रामचरितमानस' रक्खा है, पर वह जगत में रामायण के नाम से प्रसिद्ध हो रहा है। इसकी भाषा वैसवाड़ी और अवधी है ; गोस्वामी तुलसीदासजी जिसको 'भाषा' कहते हैं उसमें 'श्री' को छोड़ तालव्य 'श' और 'ण' का कहीं प्रयोग नहीं है । वे 'ख' के स्थान में मूर्धन्य 'ष' और व को, आजकल के 'व' की तरह लिखते थे । इसी प्रकार क्ष' के स्थान में 'छ' या 'ष' तथा 'र' के स्थान में 'ग्य' लिखा करते थे। उनकी अवधी वर्णमाला के कुल ४१ अक्षर हैं । यथा- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, । क, ख, ग, घ। च, छ, ज, झ, ट, ठ, ड, ढ, इ, ढ़। ताथ, द ध, न । प, फ, ब, भ, म । य, र, ल, व, स, ह । गोसाँईजी बड़े और अच्छे अतर लिखते थे। उनके हाथ की लिखो वाल्मीकीय रामायण की एक प्रति काशी के सरकारी सरस्वती-भवन में रक्खी है। राजापुर में अयोध्याकाण्ड उन्हीं के हाथ का लिखा अंव तक वर्तमान है। रामचरित मानस की रचना में उन्होंने प्रजभाषा, संस्कृत, प्राकृत, मागधी, अवधी, वैसवाड़ी, बुन्देलखण्डी, फारसी और अरबी भाषा के शब्दों को सम्मिलित किया है । गोसाँईजी के समय की लिपिप्रणाली और वर्तमान काल की लिपिप्रणाली से बड़ा अन्तर है। इसकी पुष्टता राजापुर के अयोध्या कांड को देखने से बहुत कुछ होती है। यही कारण है कि वर्तमान के संशोधक गण बिना सोचे समझे संशोधन कर अनेक पाठ-प्रमाद उत्पन्न कर दिये हैं । हर्ष की " १