पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/४६४

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द्वितीय सोपान, अयोध्याकाण्ड । gy "राजन राउर नाम जस । जेहि राउर अति अनमत ताका । यह नाति न राउरि हाई, इत्यादि। पर राउर शब्द राजा का बोधक नहीं और न राजा के अर्थ में कहीं गोस्वामीजी ने प्रयोग किया है। पूछे कोउ न अतरु. देई । गय जेहि भवन भूप कैकेयी। कहि जयजीव बैठ सिर नाई । देखि भूप गति गयउ सुखाई ॥३॥ पूछने पर कोई जवाब नहीं देता है (मानों सब दास-दासियाँ मूंगे बहरे हुए हैं) जिल घर में राजा और केकयी थी वहाँ गये । जयजीव कह सिर झुका कर बैठ गये और राजा की दशा देख सूख गये ॥३॥ सोच बिकल बिबरन महि परेऊ । मानहुँ, कमल मृल परिहरेऊ । सचिव सभीत सकइ नहिं पूछी । बाली असुभ-भरी सुभ-छूछी ॥४॥ हाजा लोच से विकाल दुति हीन होकर धरती पर पड़े हैं, वे ऐसे मालूम होते हैं मानो कमल जड़ से उखड़कर मुरझाया हो । मन्त्री भय से पूछ नहीं सके, इतने में शुभ से खाली और अशुभ ले भरी हुई केकयी बोली | दो०--परी न राजहि नौंद निसि, हेतु जान जगदीस । राम राम रटि भार किय, कहइ न भरम महीस ॥३८॥ राजा को रात में नींद नहीं पड़ी इसका कारण तो ईश्वर जाने। राम राम रट कर सवेरा किया, पर इसका भेद राजा कहते नहीं हैं ॥३॥ केकयी का यह कहना भूठा है कि इसका कारण ईश्वर जाने, क्योंकि वह सब जानती थी। इस झूठ को सत्य करने के लिए दूसरा झूठ कहना कि राजा मर्म नहीं कहते हैं 'मिथ्याध्यवसित अलेकार है। चौ०-आनहु रामहि बेगि बोलाई । समाचार तब पूछेहु आई॥ चलेउ सुमन्त्र राय रुख जानी। लखी कुचालि कौन्हि कछु रानी॥१॥ रामचन्द्र को तुरन्त बुला लाइये तक आ कर समाचार पूछना । राजा का रुख जाम कर सुमन्त्र चले और मन में समझ गये कि रानी ने कुछ कुचाल की है ॥१॥ लक्षण देख कर अनुमान गल. से. केकयी की कुचाल को समझ लेना 'अनुमानप्रमाण अलंकार है। सोच बिकल मग परइ न पाऊ। रामहिं बालि कहहि का राज। उर धरि धीरज गयउ दुआरे । पूँछहिँ सकल देखि मन मारे ॥२॥ सुमन्त्र सोच से बेचैत है, उनको पाँव रास्ते में सीधे नहीं पड़ता है, सोचते जाते हैं कि रामचन्द्र को बुला कर राजा क्या कहेंगे उदय में धीरज धारण करके दरवाजे पर गये, उन्हें मन.मारे (उदास) देख सब कारण पूछते हैं ॥२॥