पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/४७

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( २२ ) भावार्थ। इनूमानजी और भरतजी के मन की इच्छा लख कर लक्ष्मणजी ने (भरे दरबार में तुलसी की यात) कही है । हे नाथ ! कलिकाल में भी श्राप के नाम से विश्वास और प्रीति एक सेवक की पूरी पड़ी है ॥१॥ सम्पूर्ण सभा के लोग सुन कर साथ ही बोल उठे कि, हाँ- -उस भक्त की रीति हम लोगों की जानी हुई है । गरीवनेवाज (रामचन्द्रजी) की कृपा पेसी ही है, देखना हूँ स्वामी ने उसकी घोह पकड़ी है (फिर उसकी प्रीति क्यों न निवहेगी ?) ॥२॥ रामचन्द्रजी ने हंस कर कहा-सत्य है, मैंने भी (सीताजी से) सबर पाई है । तुलसी श्रनाथ की बन गयो (विनयपत्रिका पर ) रघुनाथजी की सही हो गयी, अव यह जन प्रसन्नता से चरणों में मस्तक नवाता है ॥शा इति शुभम् CcebNEOS हिन्दी महाभारत हलारी यह पुस्तक थोड़े दिनों ले रुध कर तैयार हो गई है। इस पुस्तक में रंगीन चित्र और सादे कुल ६ हैं। पर हैं ये सब सुन्दर, भावपूर्ण और नवीन। इसके लेखक हैं पं० सहावीर प्रसाद सालवीय। कुल महालात का सरल हिन्दी में रोचकता से ऐसा ऋच्छाः वर्णन, साय कहीं न पावेंगे । मूल्य खजिल्द पुस्तक का केवल ३। मिनेजर, बेलवेडियर प्रेस, प्रयाग। CARTOOSSERaBBSRDST