पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/४७७

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. शामचरित मानस। अति विषाद-बस लोग लोगाई। गये मातु पहिँ राम गोसाँई। मुख प्रसन्न चित-चौगुन चाऊ । मिटा सोच जनि राखइँराऊ । इस तरह पुरुष और स्त्रियाँ अत्यन्त विषाद के वश में हो रहे हैं, उधर स्वामी राम- चन्द्रजी माता के पास गये । उनका सुख प्रलश है और मन में चौगुना उत्साह है, यह सोच मिट गया कि राजा रख न ले अर्थात् माता केकयी ने वर माँग लिया इससे माता पिता दोनों की श्राक्षा हो गई तो अब रुकावट नहीं पड़ सकती ॥४॥ दानव गयन्द रघुनीर अन, राज अलान समान । छूट जानि बन-गमन सुनि, उर अनन्द अधिकान ॥३१॥ रखनाथजी का मन नया (जङ्गली पकड़ा हुआ ) हाथी के समान है और राज्य सीकड़ (बन्धन ) के बराबर है । वनयात्रा सुन कर अपने को उस बन्धन से छूटा हुआ समझ कर हृदय में बड़ा आनन्द हुआ ॥५१॥ रघुनाथजी का मन और जाली नवीन पकड़ा हुआ हाथी, राज्य और हाथी बाँधने का सीकड़ परस्पर उपमेय उपमान हैं । समान-वाचक तथा वन-गमन सुन कर छूट जाना जान कर अधिक प्रसन्न होना-धर्म 'पूर्णोपमा अलंकार' है । देने वाक्यों में बिना वाचक पद के बिम्ब प्रतिबिम्त भाव प्रकट होना 'दृष्टान्त अलंकार' है अर्थात् जैसे बेड़ी छूटने से जङ्गली हथी ख़ुश होता है, वैसे वन-गमन सुन कर रामचन्द्रजी प्रसन्न हैं। दोनों प्रलंकारों को सन्देहलङ्कर है। चौ०-रघुकुल-तिलक जारि दोउ हाथा । मुदित मातु-पद नायउमाथा॥ दीन्हि असीस लाइ उर लीन्हे । भूषन-बसननिछावरि कीन्हे॥१॥ रघुकुल के शिरोमणि रामचन्द्रजी ने दोनों हाथ जोड़ कर प्रसन्नता से माता के चरणों में मस्तक नवाया। माताजी ने आशीर्वाद देकर उन्हें हदय से लगा लिया और गहने-कपड़े न्योछावर किये ॥ १॥ बार बार मुख चुम्बति साता । नयन-नेह-जल पुलकित-गांता॥ गोद राखि पुनि हृदय लगाये। खवत प्रेम-रस पयद सुहाये ॥२॥ आवाजी पार बार मुख चूमती हैं. उनकी आँखों में प्रेम से जल भर आया और शरीर पुलकित हो गया । गोद में बैठा कर फिर छाती से लगा लिया, पयोधरों से प्रेम और अानन्द के कारण सुन्दर दूध बहने लगा ॥२॥ माता कौशल्याजी के हृदय का अपूर्व प्रेम पुन विषयक रतिभाव है। यह भाव रामचन्द्रजी के मुख की प्रसन्नता को देख कर एवम् रघुनाथजी के पाँव पड़ने से उद्दीपित होकर गोद में लेना, बार बार चूमना और हृदय से लगाना, अश्रुपात, रोमान आदि अनुभाष तथा हर्ष, चपलता और मति सञ्चारी भावों से पुष्ट होकर पूर्णावस्था को प्राप्त हुआ है।