पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/५१२

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४५३ द्वितीय सोपान, अयोध्याकाण्ड । दो०-राम-दरस-हित नेम ब्रत, लगे करन नर नारि । मनहुँ कोक-कोको-कमल, दीन बिहीन तमारि ॥८६॥ रामचन्द्रजी के दर्शनार्थ स्त्री पुरुष नेम और व्रत करने लगे। वे संब ऐसे दुःखी मालूम होते हैं मानों चकवा-चकवी और कमल बिना सूर्य के दीन हो ॥६॥ चौ०-सीता सचिव सहित दोउ भाई । सृङ्गबेरपुर पहुँचे जाई ॥ उतरे राम देवसरि देखी । कीन्ह दंडवत हरष बिसेखी॥१॥ सीताजी और मन्त्री के सहित दोनों भाई जाकर ऋङ्गवेरपुर पहुंचे । गङ्गाजी को देख कर रामचन्द्रजी रथ से उत्तर पड़े और बड़े हर्ष से दण्डवत किया ॥१॥ ठखन सचिव सिय किये प्रनामा । सबहिँ सहित सुख पायउ रामा ॥ गङ्ग सकल मुद-मङ्गल-मूला । सब सुख-करनि हरनि सब सूला ॥२॥ लक्ष्मणजी, सुमन्त और सीताजी ने प्रणाम किया, सब के सहित रामचन्द्रजी सुखी हुए और बोले-माजी सम्पूर्ण आनन्द मङ्गलों की मूल हैं, सब सुन देनेवाली और समस्त पीड़ाओं की हरनेवाली हैं ॥२॥ गङ्गाजी दुःख को हर कर बदले में सुख देती हैं 'परिवृत अलंकार' है। कहि कहि कोटिक कथा प्रसङ्गा । राम बिलोकहिँ गङ्ग-तरडा । ॥ सचिवहि अनुजहि प्रियहि सुनाई । विबुधनदी महिमा अधिकाई ॥३॥ करोड़ कथाओं की बात कह कह कर रामचन्द्रजी गङ्गाजी की लहरों को देखते हैं। मन्त्री, छोटे भाई और प्रिया-सीताजी को देवनंदी की बहुत बड़ी महिमा सुनायी ॥३॥ मज्जन कीन्ह पन्थ स्त्रम गयऊ । सुचि जल पियत मुदित मन भयऊ। सुमिरत जाहि मिटइ खम-भारू । तेहि सम यह लौकिक व्यवहारू ॥४॥ स्नान किया जिससे रास्ते की थकावट दूर हुई और पवित्र जल पी कर मन में प्रसन्न हुए। जिनका स्मरण करने से परिश्रम का बोझ (जीव का संसार में बार बार जन्म, मृत्यु और गर्भवास) मिट जाता है, उनकी थकावट मिटी ! यह केवल लोक व्यवहार है ॥४॥ पहले कही हुई बात कि स्नान करने से मार्गश्रम मिट गया इसका निषेध करके दूसरी बात कहना कि जिनका नाम स्मरण करने से थकावट का भार मिटता है, उनको थका हुमा लोक मर्यादा के अनुसार कहा गया 'उकाक्षेप अलंकार' है। दो०-सुद्ध सच्चिदानन्द-मय, कन्द भानुकुल-केतु । चरित करत नर अनुहरत, संसृति-सागर-सेतु acn शुद्ध सत् चित् आनन्द कन्द (मेघ) के रूप सूर्यकुल के पताका मनुष्य लीला के अनुसार चरित करते हैं, जो संसार की समुद्र के लिए पुल है ॥ ७ ॥ ।