पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/५१६

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3 । द्वितीय सोपान, अयोध्याकाण्ड । चौ -बिबिध बसन उपधान तुराई। छीर-फेन मृदु बिसद सुहाई ॥

तहँ सिय राम सयन निसि करहीं। निजछबि रति-मनोज मद हरहीं ॥१॥

दूध के फेन के समान कोमल सफेद और सुहावने जहाँ तरह तरह के वस्त्र, तकिया और तोशक विछे रहते हैं। वहाँ सीताजी और रामचन्द्रजी रात में सोते हैं और अपनी छवि से रति तथा कामदेव के गर्व को हर लेते हैं ॥ १ ॥ पूर्वार्ट में विविध वस्त्र, तोशक, तकिया-उपमेय, क्षीरफेन-उपमान, मृदु विशद सुहावना-धर्म है। किन्तु सम-बाधक लुप्त है। यह 'वाचकलुप्तोपमा अलंकार' है । उतरार्द्ध में सीताजी और रामचन्द्रजो उपमेय, रति और मनोज उपमान है। उपमान को सुन्दरता का प्रहार कर उपमेय को वरावरी में व्यर्थ होना 'पञ्चम प्रतीप अलंकार है। ते सिय-राम साथरी सोये । खमित बसन बिनु जाहिँ न जाये ॥ मातु पिता परिजन पुरबासी । सखा सुसील दास अरु दासी ॥२॥ वही सीताजी और रामचन्द्रजी साथरी पर सोये हैं, थके हुए बिना वस्त्र के जो देखें नहीं जाते हैं। माता, पिता, कुटुम्ब के लोग, नगर निवासी, मिन, सुन्दर स्वभाव के दास और दासियाँ ॥२॥ जोगवहिँ जिन्हहिँ प्रानकी नाई। महि सोवति तेइ राम गोसाँई ॥ पिताजनक जग बिदित प्रभाऊ । ससुर सुरेस-सखा रघुराज ॥३॥ जिन्हें प्राण की तरह रक्षित रखते थे, वही स्वामी रामचन्द्रजी भूमि पर सोते हैं । पिता जिनके जनकजी का प्रभाव संसार में विख्यात है और ससुर रघुराज दशरथजी इन्द्र के मित्र हैं ॥ ३ ॥ रामचन्द्र पति सो बैदेही । सावति महि बिधि बाम न केही । सिय-रघुबीर कि कानन जोगू । करम-प्रधान सत्य कह लोगू ॥४॥ रामचन्द्रजी जिनके स्वामी हैं, वही विदेह नन्दिनी धरती पर सो रही हैं, विधाता किसको टेढ़े नहीं होते ? क्या सीताजी और रघुनाथजी वन के योग्य हैं ? लोग सच कहते हैं कि कर्म ही प्रधान है ॥४॥ रामचन्द्रजी जिनके पति हैं वह जानकी धरती पर सोती हैं ? अपने इस कथन का सम. र्थन हेतु-सूचक बात कहकर करता है कि ब्रह्मां किसके टेढ़े नहीं होते 'काव्यलिङ्ग अलंकार है। क्या सीताजी और रघुनाथजी वनबास के योग्य हैं ? काकु से मिन्न अर्थ भासित होना कि ये वन-बास के योग्य नहीं हैं 'वक्रोक्ति अलंकार है। लोग सत्य कहते हैं का ही प्रधान है, यहाँ कर्म-प्रधान सिद्ध अर्थ है उसको फिर से सत्य कहना 'विधि अलंकार' है। व्यार्थ में असङ्गति और विषम अलंकार की झलक है। इस प्रकार यहाँ अलंकारों को सन्देहसङ्कर है।