पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/५३

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२ रामचरित-मानस । शानरूप नित्य गुरु में शङ्कर का आरोप 'सम अभेद रूपक' है । शिवजी के गुण से टेढ़े चन्द्र का गुणवान होना 'प्रथम उल्लास' है । संज्ञा साभिप्राय है, क्योंकि गोस्वामीजी अपनी धुद्धि को मलिन मान कर वन्दना करते हैं कि जिन्होंने चक्र चन्द को वन्दनीय बनाया वे मेरी मति निर्मल कर देंगे 'परिकराङ्कुर अलंकार की ध्वनि' है। सीतारामगुणग्रामपुण्यारण्यविहारिणी। वन्दे विशुद्धविज्ञानी कवीश्वरकपीश्वरी ॥४॥ सीता और रामचन्द्रजी के गुण-समूह रूपी पवित्र वन में बिहार करनेवाले विशुद्ध विज्ञानसम्पन्न कवीश्वर (चाल्मीकि मुनि ) और कपीश्वर ( हनूमानजी ) की मैं वन्दना करता मुनि और बन्दर कानन विहारी होते हैं, इसलिये सीताराम के गुण प्राम में वन का आरोपण किया गया है। लय वन पुनीत नहीं होते, पर इसमें पवित्रता का गुण 'अधिक अभेद रूपक' है। उद्भवस्थितिसंहारकारिणों क्लशहारिणीम् । सर्वश्रेयस्करी सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम्॥ ५ ॥ उत्पत्ति, पालन और संहार करनेवाली, फ्लेशों के हरनेवाली, सम्पूर्ण कल्याणों के पारने वाली, रामचन्द्र की प्रियतमा सोताजी को मैं नमस्कार करता हूँ ॥५॥ शार्दलविक्रीडित-वृत्त। यन्मायावशवर्त्ति विश्वमखिलं ब्रह्मादिदेवासुराः। यत्सत्त्वादमृणैव माति सकलं रज्जो यथाऽहेर्भमः। यत्पादप्लव एक एव हि मवास्सोधेस्तितीविताम् । वन्देऽहं तमशेषकारणपरं रामाख्यमोशं हरिम् ॥ ६॥ जिनको माया के वश में सम्पूर्ण संसार ब्रह्मादिक देवता और देय हैं, जिनके बल से झूठा यह सारा जगत् रस्सी में साँप के भ्रम के समान सत्यप्रतीत होता है। जिनके चरण ही संसार- सागर से पार जाने की इच्छा रखनेवालों के लिये एकमात्र नौका-स्वरूप है, समस्त कारणों से परे जिनका नाम यम है, उन ईश्वर विष्णु भगवान को मैं प्रणाम करता हूँ ॥६॥ गन्धारम्भ में नमस्कारात्मक, वस्तु निर्देशात्मक और आशीर्वादात्मक तीन प्रकार के मङ्गलाचरण होते हैं । गोस्वामीजी ने नमस्कारात्मक मङ्गलाचरण किया है।