पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/५४१

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१८० रामचरित-मालस। धरती के नगर गाँव से नागलोक और देवलोक कहीं बढ़ कर हैं, उनकी अयोग्यता प्रगट कर के नगर-गावो की अतिशय वड़ाई करना 'समस्यन्धातिशयोक्ति अलंकार है। ध्यतार्थ द्वारा प्रथम उल्लास अलंकार की लंसृष्टि है, क्योंकि रामचन्द्र जी के चरण स्पर्श से वे पुरष रूप और धन्य हुए हैं। जहँ जहँ राम चरन चलि जाही। तिन्ह समान अमरावति नाही। पुन्य पुज्ज मग निकट निवासी । तिन्हहिँ सराहहिँ सुरपर बासी ॥२॥ जहाँ जहाँ रामचन्द्रजी. चरण से चल कर जाते हैं, उन गाँवों के समान इन्द्र को पुरी नहीं है। रास्ते के समीप रहनेवाले स्त्री-पुरुष पुण्य की राशि हैं, उन्हें देवलोक दासी सराहते हैं ॥२॥ जे भरि नयन बिलोकहिँ रामहि । सीला लखन सहित घनस्यामहि । जे सर सरित राम अवगाहहिं । तिन्हहिं देवसर सरित सराहहि ॥३॥ जो सीताजी, लघमणजी और मेघ के समान श्याम रामचन्द्रजी को आँख भर देखते हैं और जिन तालाव, नदियों में रामचन्द्रजी स्नान करते हैं, उन्हें देवताओं के सरोवर और नदियाँ सराहती हैं ॥३॥ जेहि तरु तर प्रभु बैठहिँ जाई । करहिँ , कलपतरु तासु बड़ाई। परसि राम-पद-पदुम परागा। मानति भूमि भूरि निज भागा ॥४॥ जिस पेड़ के नीचे प्रभु रामचन्द्रजी चैठ जाते हैं, उन वृक्षों की बड़ाई कल्पवृक्ष करता है। रामचन्द्रजी के चरण-कमलों को धूलि को छू कर पृथ्वी अपने को बड़ी भाग्यस्तो मानती है ॥ दो-छाँह करहिँ घन बिबुधगन, बरषहिँ सुमन सिहाहिँ ॥ देखत गिरि बन बिहँग मृग, राम चले मग जाहि ॥१३॥ बादत छाँह करते हैं और देवता-वृन्द फूल घरसाते जाते हैं तथा वड़ाई करते हैं। इस तरह पहाड़, वन, पक्षी और मृगों को देखते हुए रामचन्द्रजी मार्ग में चले जाते हैं ॥११३॥ बादलों के छाँह करने और देवताओं के फूल बरसाने से रामचन्द्रजी को इन आकस्मिक कारणों से मार्गचलने में सुगमता का होना 'समाधि अलंकार' है। चौ०-सीता-लखन-सहित रघुराई । गाँव निकट जब निकसहि जाई । सुनि सब बाल वृद्ध नर-नारी। चलहिँ तुरत गृह-काज बिसारी॥१॥ सीताजी और लक्ष्मणजी के सहित रघुनाथजी जब जाकर गाँव के पास निकलते हैं, तब यह सुन कर सब बालक, बुह, स्त्री-पुरुष घर का काम भूल कर तुरन्त चल देते हैं ॥१॥ 1