पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/५४८

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द्वितीय सोपान, अयोध्याकाण्ड । ४६७ चौ०-नारि सनेह बिकल.सब हाही । चकई साँझ समय जनु सोही । मृदु पद-कमल कठिन मग जानी । गहबरि हृदय कहइँ बर बानी ॥१॥ स्त्रियाँ स्नेह के वश विकल हो जाती हैं, वे ऐसो मालूम होती हैं मान सन्ध्याकाल में चकवी (दुखित) लोहती है। । कोमल चरण-कमल और कठोर मार्ग समझ कर व्याकुल चित्त से श्रेष्ठ वाणी में कहती हैं ॥१॥ परसत मृदुल-चरन अरुनारे । सकुचति महि जिमि हृदय हमारे । जाँ जगदीस इन्हहि बन दीन्हा । कस न सुमन-मयमारग कीन्हा ॥२॥ इनके कोमल लाल चरणों के छू जाने से पृथ्वी उसी तरह सकुचाती है जैसे हमारा दृश्य सञ्च रहा है। यदि जगदीश्वर ने इन्हें वनवास ही दिया तो रास्ते को फूल-मय क्यों नहीं बनाया ? ॥२॥ शङ्का निवारणार्थ विचार करना कि यदि ईश्वर ने इन्हें वनवास ही दिया तो पुष्प रूप माग क्यों नहीं किया 'वितर्क सवारीभाव' है। जौँ माँगा पाइय बिधि पाहौँ । ये रखियहि सखि आँखिन्ह माही । जे नर नारि न अवसर आये। तिन्ह सिय राम न देखन पाये ॥३॥ हे सखी ! यदि विधाता से माँगने पर मिले तो इन्हें मैं आँस्त्रों में रक्खू । जो स्त्री-पुरुष उस समय नहीं आये वे सीताजी और रामचन्द्रजी को नहीं देख पाये ॥३॥ सुनि सुरूप बूझहिँ अकुलाई । अब लगि गये कहाँ लगि भाई । समरथ धाइ बिलोकहिँ जाई । प्रमुदित फिरहिँ जनम फल पाई॥४॥ उनकी सुहावनी छवि सुन कर बेचैनी से पूछते हैं कि-हे माई ! अब तक वे कहाँ पर्यन्त गये होंगे ? बलवाले (युवा-पुरुष) दौड़ कर जाते और दर्शन करते हैं जन्म का फल पाकर प्रसन्नता से लौटाते हैं | दो-अबला-बालक-वृद्धजन, कर मीजहिं पछिताहिँ। होहि प्रेम-बस लोग इमि, राम जहाँ जहँ जाहि ॥१२१॥ स्त्री बालक और बूढ़े मनुष्य (जो दौड़ नहीं सकते ३ ) हाथ मल कर पछताते हैं। इसी तरह जहाँ जहाँ रामचन्द्रजी जाते हैं, वहाँ वहाँ लोग प्रेम के अधीन होते हैं ॥१२॥ चौ०-गाँव गाँव 'अस होइ अनन्दू । देखि भानुकुल-कैरव-चन्दू ॥ जे कछु समाचार सुनि पावहिं । ते नृप-रानिहि दोष लगावहि ॥१॥ सुर्यकुल रूपी कुमुद के चन्द्रमा (रामचन्द्रजी) को देख कर गाँव गाँव में ऐसा आनन्द होता है। जो कुछ समाचार सुन पाते हैं वे राजा-रानी को दोष लगाते हैं ॥१॥ सभा की प्रति में 'जे यह समाचार सुनि पावहिं पाठ है।