पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/५५१

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४९० रामचरित-मानस । चौ०-अजहुँ जासु उर सपनेहुँ काऊ । बसहि लखन-सिय-राम घटाउ। रामधाम-पथ पाइहि साई । जो पथ पाव कबहुँ मुनि कोई ॥१॥ अब भी जिनके हृदय में कभी सपने में भी लक्ष्मणजी, सीताजी श्रीर रामचन्द्रजी बटोही चलते हैं, वे रामचन्द्रजी के धाम वैकुंठ का मार्ग पावेंगे जिस रास्ते को कभी कोई मुनि पाते हैं ॥१॥ अव भी ये वटोही स्वप्न में जिनके हृदय में घसते हैं, इस विशेष बात का सामान्य से समर्थन करना कि वह रामचन्द्रजी के धाम का पथ पावेगा। इतने से सन्तुष्ट न होकर फिर विशेष से समर्थन करना कि जिस पथ को कभी कोई मुनि पाते हैं 'विकस्वर अलंकार है। तब रघुबीर समित सिय जानी । देखि निकट बट सीतल पानी ॥ तहँ बसि कन्द मूल फल खाई । प्रात नहाइ चले रघुराई ॥२॥ तब रघुनाथजी ने सीताजी को थकी हुई समझ कर पास ही बड़ का पेड़ और ठंडा पानी देख वहीं ठहर गये । कन्द, मूल और फल खा (विश्राम कर) सवेरे स्नान कर के रघुनाथजी चले ॥२॥ देखत बन सर सैल सुहाये । बालमीकि ओस्रम प्रभु आये। रोम दीख मुनि-बास सुहावन । सुन्दर गिरि कानन जल पावन ॥ ३॥ सुन्दर वन तालाव और पर्वत को देखते हुए प्रभु रामचन्द्रजी वाल्मीकि मुनि के भाभम में आये । रामचन्द्रजी ने सुन्दर पहाड़, वन और पवित्र जल मुनि के सुहावने स्थान में देखा ॥१॥ सरनि सरोज बिटप बन फूले । गुज्जत मज्जु मधुप रस भूले ॥ खग-मृग-बिपुल कोलाहल करहीं। विरहित बैर मुदित मन चरहीं ॥१॥ तालाबों में कमल और वन में वृक्ष फूले हुए हैं मकरन्द में भुले भ्रमर सुन्दर गुजारते हैं। पक्षी और मृगों के झुंड शोर करते हैं तथा वैर त्याग कर प्रसन्न मन से फिरते हैं Han दो-सुचि सुन्दर आसम निरखि, हरषे राजिव-नैन । सुनि रघुबर आगमन मुनि, आगे आयउ लेन ॥ १२४ ॥ पवित्र और सुन्दर पाश्रम देख कर कमल-नयन रामचन्द्रजी प्रसन्न हुए । रघुनाथजी का श्रागमन सुन कर वाल्मीकि मुनि उन्हें लेने के लिए आगे आये ॥१२॥ चौ०--मुनि कहँ राम दंडवत कीन्हा । आसिरबाद बिप्रबर दीन्हा । देखि राम-धि नयन जुड़ाने । करि सनमान आस्त्र महिँ आने॥१॥ मुनि को रामचन्द्रजी ने दंडवत किया और ब्राह्मणोत्तम ने उन्हें आशीर्वाद दिया । गम चन्द्रजी की छवि को देख कर उनके नेत्र शीतल हुए, सत्कार करके आश्रम में ले आये ॥१॥ 1