पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/५६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रामचरित-मानस। ५०६ दो०-राम-लखन-सीता सहित, सोहत परन-निकेत । जिमि बासव बस अमरपुर, सची जयन्त समेत ॥ १४१ ॥ लक्ष्मणजी और सीताजी के सहित पर्णकुटी में रामचन्द्रजी ऐसे सोहते हैं, जैसे-शची (इन्द्राणी) और जयन्त के सहित अमरावती में इन्द्र निवास करता है ॥ १४१॥ चौ०-जोगवहिंप्रनु सिय लखनहि कैसे। पलक-बिलाचन-गोलक जैसे ॥ सेवहि लखन सीय-रघुबीरहि । जिमिअबिबेकी-पुरुष सरीरहि ॥१॥ प्रभु रामचन्द्रजी सीताजी और लक्ष्मणजी की कैसे रक्षा करते हैं, जैसे-पलके आँख की पुतलियों की रखवाली करती हैं । लक्ष्मण और सीताजी रघुनाथजी की इस तरह सेवा करते हैं, जैसे अज्ञानी पुरुष शरीर की करते हैं ॥ १ ॥ एहि बिधि प्रभु बन बसहिँ सुखारी । खग-मृग-सुर-तापस हितकारी ॥ कहेउँ राम-बन-गवन सुहावा । सुनहु सुमन्त्र अवध जिमि आवा॥२॥ इस तरह पक्षी,मृग, देवता और तपस्वियों के हितकारी प्रभु रामचन्द्रजी सुख से वन में निवास करते हैं। तुलसीदासजी कहते हैं :-मैं ने रामचन्द्रजी की सुहावनी वनयात्रा वर्णन की अब जिस तरह सुमन्त्र अयोध्यापुरी को आये, वह सुनिये ॥२॥ जिस वनयात्रा से अयोध्या नगर में महान शोक छा गया है, उसको कविजी सुहावनी क्यों कहते हैं। उत्तर-इसी से पृथ्वी, गैया, ब्राह्मण, मुनि और देवता सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का कल्याण होगा, इसलिए सुहावनी कहा है। फिरेउ निषाद प्रभुहि पहुँचाई । सचिव सहित रथ देखेसि आई । मन्त्री विकल बिलोकि निषादू । कहि न जाइ जस भयउ विषादू ॥३॥ प्रभु रामचन्द्रजी को पहुँचा कर निषाद लौटा, उसने घर आकर मन्त्री के सहित रथ को देखा । मन्त्री को घेचैन देख कर निषाद को जैसा दुःख हुआ वह कहा नहीं जा सकता ॥३॥ राम राम सिय लखन पुकारी। परेउ घरनितल व्याकुल भारी॥ देखि दखिन दिसि हय हिहिनाहौँ । जनु बिनु पङ्ख बिहँग अकुलाहीं॥४॥ (निषाद को देखते ही सुमन्त्र ) हा रामचन्द्र, सीता और लक्ष्मण को पुकार कर बड़ी व्याकुलता से धरती पर गिर पड़े। दक्षिण दिशा की ओर देख कर घोड़े हिनहिनाते हैं, वे ऐसे मालूम होते हैं मानों विना पङ्ख के पखेरू अकुलाते हो ॥४॥ शोक से व्यथित हृदय होकर सुमन्त्रका धरती पर गिरता माह और 'अपस्मार सञ्चारीभाव' है। दो-नहि तृन चरहि न पियहि जल, मोचहिं लोचन बारि। व्याकुल भयउ निषाद सब, रघुबर-बाजि निहारि ॥१४२० . घास नहीं चरते हैं पार न पानी पीते हैं, आँखा से जल बहाते हैं। रघुनाथजी के सब घोड़ो को देख कर निषाद विकल हो गया ॥ १४२ ॥