पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/५७

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रामचरित-मानस । ६ की, अब पृथ्वीतल के देवताओं की वन्दना प्रारम्भ की, इनमें सर्वश्रेष्ठ देवता ब्रामण है। इसलिए पहले ब्राह्मणों को प्रणाम करते हैं। साधु चरित सुन सरिस कपासू । निरस बिसद गुन-मय फल जासू ॥ जो सहि दुख पर-छिद्र दुरावा । बन्दनीय जेहि जग जम पावा ॥३॥ सज्जनों का चरित्र कपास के समान कल्याणकारी है जिसका फल रसहीन (सूबा) होने पर भी उज्ज्वल गुण ( डोग और सद्वृत्ति ) से मिला हुश्रा होता है । जो स्वयं दुःख सह कर दूसरों के छेद को बैंकता है, जिससे जगत् में सराहने योग्य यशपाता है ॥ ३॥ साधु चरित-उपमेय, कपास-उपमान, सरिस वाचक और शुभ-साधारण धर्म 'पूणीपमा- लंकार है। उसके फल नीरस, उज्ज्वल और गुणमय है-इन तीनों विशेषणों के श्लेष अर्ध कपास फल तथा साधुचरित दोनों पर लगते हैं तब उपमा सिद्ध होती है, छिद्र शब्द भी श्लिष्ट है । यहाँ उपमा और श्लेष में अदागीमाच है । गुटका में 'साधु चरित मुभ चरित कपासू' पाठ है। मुद-मङ्गल-मय सन्त-समाजू । जो जग जङ्गम तीरथराजू ॥ रामभगति जहँ सुरसरि धारा। सरतइ ब्रह्म-विचार-प्रचारा ॥ ? आनन्द मङ्गलमय सन्तों को समाज जो जगत् में चलता फिरता नीर्थराज प्रयाग है। जिसमें रामभक्ति गङ्गाजी की धारा (अखरड प्रवाह) है और ब्रह्म विनार का फैलाय सरस्वती है ॥४॥ यहाँ से सन्त-समाज और तीर्थराज का साइतपक वर्णन है । नीथंगजस्थायी है; किन्तु साधु-मण्डली रूपी प्रयाग में चलने फिरने का अधिकत्व है । जैने सरस्वती नश्य है. तैसे ब्रह्म विचार गूढ़ तत्व है। विधि-निषेध-सय कलिसल-हरनो। करम कथा रविनन्दिनि बरनो ॥ हरि-हर-क्रथा विराजति बेनी । सुनस सकल-मुद-मङ्गल देनी ॥५॥ करने और न करने योग्य कर्मों की कथा का वर्णन कलि के पापों को हरनेवालो यमुना नदी है । विष्णु भगवान और शिवजी की कथा त्रिवेणी रूप विराजती है, जो सुनते ही श्रानन्द मङ्गल देती है ॥ ५॥ बट बिस्वास अचल निज-धर्मा । तीरथराज-समाज सुकर्मा । सहि सुलभ सब दिन सब देसा । सेक्त साइर समन कलेसा ॥६॥ अपने धर्म में अचल विश्वास अक्षय-बट है और सुकर्म तो राज के समाज (अन्यान्य तीर्थ स्थल) है। यह प्रयाग सब को सब दिन और सभी देशों में सहज ही प्राप्त होनेवाला है, श्रादरपूर्वक लेवा करने ले क्लेशों का नाश कर देता है ॥ ६ ॥ स्थावर तीर्थराज को लोग चल कर एक ही स्थान में पाते हैं और उसका महत्व मकर के दिनों में अधिक कहा जाता है, परन्तु सन्त-समाज रूपी प्रयाग स्वयम् चल कर सव देशोंने सब को बारहों महोने संसान रुपसे प्राप्त होनेवाला है। वे तीर्थराज स्नान करने से कालान्तर