पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/५७८

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द्वितीय सोपान, अयोध्याकाण्ड । ५१७ करि बिलाप सब रोवहिं रानी । महा बिपति किमि जाइ बखानी ॥ सुनि बिलाप दुखहू दुख लागा । धीरजहू कर धीरज भागा ॥४॥ चिलाप कर के सब रानियाँ रोती हैं, वह भारी विपत्ति कैसे कही जा सकती है। रुदन सुन कर दुःख को भी दुःख लग रहा है और धीरज को भी धीरज भाग गया ॥ दुःख भी दुःखी हुप्रा और धैय्यं का भी साहस छूट गया, इस कथन में 'अत्युक्ति अलंकार है। दो०-भयउ कोलाहल अवध अति, सुनि नृप-राउर सार। बिपुल बिहँग-बन परेउ निसि, मानहुँ कुलिस कठोर ॥१५३॥ राजमहल का शोर सुन कर सारी अयोध्या में बड़ी चिल्लाहट हुई। ऐसा मालूम होता है मानों बहुत से पक्षियों के झुण्ड पर रात्रि में वज्रपात हुश्रा हो ॥१५॥ राजमहल की रोमाई सुनते ही वात की बात में नगर में कोलाहल मचना 'चपतातिशयोक्ति अलंकार है। पक्षियों के समुदाय पर रात में बिजली पड़ने से वे बेचैन हो कर शोरगुल करते ही हैं । यह 'उक्तविषया वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार' है 'नृप-उर' शब्द का राजमहल अर्थ है । चौ०-प्रान कंठगत भयउ मुआलू । मनि-बिहीन जनु ब्याकुल ब्यालू ॥ इन्द्री सकल बिकल भइँ भारी । जनु सर सरसिजम्बन बिनु बारी॥१॥ राजा का प्राण गले में आया हुआ है, वे ऐसे मालूम होते हैं मानों बिना मणि के साँप व्याकुल हो । सारी इन्द्रियाँ बहुत ही विह्वल हुई हैं, इस तरह प्रतीत होता है मानों तालाब में बिना पानी के कमल का वन मुरमाया हो ॥१॥ कौसल्या नृप दीख मलाना । रबिकुल-रबि अथवउ जिय जाना ॥ उर धरि धीर राम महतारी । बोली बचन समय अनुसारी ॥२॥ कौशल्याजी ने राजा को दुःखी देख कर मन में जान लिया कि सूर्य कुल के सूर्य प्रस्त हुए । तब रामचन्द्रजी की माता हृदय में धोरज धर कर समयानुकूल वचन बोली ॥२॥ , लक्षणों को देख कर कौशल्याजी को राजा की भावी मृत्यु का ज्ञान होना 'अनुमान प्रमाण अलंकार है। नाथ समुझि मन करिय बिचारू । राम बियोग पयोधि अपार ॥ करनधार तुम्ह. अवध-जहाजू । चढ़ेउसकल प्रिय पथिक समाजू॥३॥ हे नाथ ! मन में समझकर विचार कीजिये कि रामचन्द्र का वियोग अपार समुद्र है। अयोध्या जहाज़ है और आप कर्णधार (खेवैया) हैं, सम्पूर्ण प्यारे यात्रियों का समाज चढ़ी है ॥३॥ धीरज धरिय त पाइय. पारू । नाहिँ त बूड़िहि सब परिवारू । जौं जिय धरिय बिलय पिय मारी। राम-लखन-सिय मिलाहिँ बहोरी॥४॥ धीरज धरिये तो पार पाइयेगा नहीं तो सारा परिवार दूध जायगा। हे प्यारे! यदि मेरी विनती मन में लाइये तो रामचन्द्र, लक्ष्मण और सीता फिर मिलेंगे ॥४॥ .