पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/५८

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। प्रथम सोपान, बालकाण्ड । में फल देते हैं और इस प्रयाग की सेवा करते ही तत्क्षण क्लेश का नाश हो जाता है । गुटका में तीरथसाज समाज सुकरमा' पाठ है। अकथ अलौकिक तीरथराऊ । देइ सद्य फल प्रगट प्रमाऊ ॥७॥ यह तीर्थराज अवर्णनीय और लोकोत्तर है, तत्काल फल देने में इसकी महिमा विख्यात है॥७॥ दो०-सुनि समुझहिं जन मुदित अन, मज्जहिँ अति अनुराग। लहहिं चारि-फल अछत-तनु, साधु-समाज प्रयाग ॥ २॥ जो मनुष्य प्रसन्न मन से साधु-समाज प्रयाग के उपदेश को अत्यन्त प्रेम से सुन कर समझते हैं वेस्नान करते हैं और चारों फल (अर्थ, धम', काम, मोक्ष) शरीर रहते ही पाते हैं (कालान्तर में नहीं, तुरन्त फल मिलता है) ॥२॥ चौ०-मजन फल पेखिय ततकाला। काक होहिं पिक बउ मराला ॥ सुनि आचरज करइ जनि कोई । सत-सङ्गति-महिमा नहिँ गाई ॥१॥ स्नान का फल तत्काल देखने में आता है कि कौए कोयल और बगुले हंस हो जाते हैं यह सुन कर कोई आश्चर्य न करे, क्योंकि सत्सङ्ग की महिमा छिपी नहीं है ॥ १॥ सन्तसमाज रूपी प्रयाग के संसर्ग से कौए और बगुले का दोष दूर हो कर उनका गुण- वान होना प्रथम उल्लास अलंकार' है। बालमीकि नारद चटजोनी । निज निज सुखनि कही निज होनी ॥ जलचर थलचर नसचर नाना जे जड़-चेतन जीव जहाना ॥२॥ वाल्मीकि, नारद और अगस्त ने अपनी अपनी उत्पत्ति अपने ही मुख से कही है। संसार में जलचारी, भूमिचारी और आकाशचारियों में नाना प्रकार के जितने जड़ चेतन जीव हैं ॥२॥ वाल्मीकि मुनि बिल से, नारद दाली से और अगस्तजी घड़े से उत्पन्न हैं। इनकी उत्पत्ति के योग्य एक भो कारण पर्याप्त न होना 'चतुर्थ विभावना अलंकार' है। वाल्मीकि मुनि ने रामचन्द्रजी से कहा था कि मैं किरातों के बीच रह कर चोरी ठगहारी करता था। एक बार सप्तर्षियों के दर्शन हुए, उनके उपदेश से श्राप का उलरा नाम 'मरा मरा' जप कर इस पदवी को पहुँचाहूँ। देवर्षि नारद ने वेदव्यासजी से कहा था कि मैं पूर्व जन्म में वेदवादी ऋषियों की दासी का पुत्र था। महर्षियों के सत्सङ्ग के प्रभाव से मेरा पाप नष्ट हो गया। काल पा कर वह शरीर छोड़ कर मैंने वर्तमान तनु पाया और निरन्तर हरिभक्ति के आनन्द 'मग्न रहता हूँ। अगस्त ऋषिने शिवजी से कहा था कि मेरे पिता मित्रावरुण एक बार रम्भा पर मोहित हुए, जिससे उनका शर्यपात हो गया। उसको उन्होंने बड़े में रख दिया, उसी से मेरी उत्पत्ति हुई । सत्सङ्गके प्रभाव से मेरी बुद्धिः सन्मार्ग में प्रवृत्त हुई और मैं मुनीश्वर पद को प्राप्त हुआ।