पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/६२

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भ्रथम सोपान, बालकाण्ड । ११ उपजहिँ एक सङ्ग जग माहीं । जलज जाँक जिमि गुन बिलगाहीं॥ सुधा सुरा सम साधु असाधू । जनक एक जग जलधि अगाधू ॥३॥ दोनों (सज्जन असज्जन ) एक साथ संसार में पैदा होते हैं, पर उनके गुण कमल और जॉक की तरह अलग अलग होते हैं । साधु अमृत के समान और असाधु मदिरा के समान हैं, जगत में (दोनों को उत्पन्न करनेवाला) एक पिता ही अथाह समुद्र है ॥शा भल अनभलनि जनिज करतूती। लहत सुजस अपलोक बिभूती॥ सुधा-सुधाकर-सुरसरि-साधू । गरल-अनल-कलिमलसरि-व्याधू ॥४॥ भले और बुरे अपनी अपनी करनी के अनुसार सुयश और यश की सिद्धि पाते है। सज्जन लोग अमृत, चन्द्रमा और गङ्गाजो है, दुष्टं पाणी विष, अग्नि और पाप की नदी (कर्मनासा) हैं ॥४॥ गुने अवगुन जानत सब कोई । जो जेहि भाव नीक तेहि सोई ॥५॥ गुण और दोष को सब कोई जानता है, पर जिसको जो अच्छा लगता है उसको वही सुहाता है॥ दो०-भलो भलाइहि पै लहइ, लहइ निचाइहि नीचु । सुधा सराहिय अमरता, गरल सराहिय मोचु ॥ ५ ॥ परन्तु भले भलाई हो पाते हैं और नीच निचाई ही लहते हैं। अमृत की प्रशंसा अमर करने में और विष की सराहना मृत्यु करने में होती है ॥५॥ इस दोहा में पद और अर्थ को बार बार आवृत्ति होना पदार्थावृति दीपक अलंकार, है। चौ०-खल-अघ-अगुन साधु-गुन-गाहा । उभय अपार उदधि अवगाहा ॥ तेहि त कछु गुन दोष बखाने । सङ्ग्रह त्याग न बिनु पहिचाने ॥१॥ दुष्टों के पाप और अवगुण का वृत्तान्त एवम् साधुओं के गुणों की कथा दोनों ही अपार और अथाह समुद्र हैं। उनके गुण दोष कुछ इसलिए कहे गये हैं कि धिना पहचान के ग्रहण वा त्याग नहीं होता ॥५॥ भलेउ पोच सब विधि उपजाये । गनि गुन दोष बेद बिलगाये ॥ कहहि बेद इतिहास पुराना । बिधि-प्रपञ्च गुन अवगुन साना ॥२॥ "भले और बुरे सब को ब्रह्मा ने उत्पन किया है, उनके गुण-दोषों को कह कर वेदों ने अलगाव कर दिया है । वेद, पुराण और इतिहास के ग्रन्थ कहते हैं कि विधाता का प्रपञ्च (संसार ) गुण दोष से मिला-जुला है ॥२॥