पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/६२५

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. रामचरित मानस । दो०-तनु पुलकेउ हिय हरष सुनि, बेनि बचन अनुकूल । भरत धन्य कहि धन्य सुर, हरषित बरषहिँ फूल ॥२०॥ त्रिवेणी के अनुकूल वचन सुन कर भरतजी का शरीर पुलकित हो पाया और मन में प्रसन्न हुए । देवता भरतजी को धन्य धन्य कह आनन्दित होकर फूल बरसाते हैं ॥२०॥ : देवताओं को सन्देह था कि भरतजी हम लोगों का अनिष्ट करने जाते हैं, परन्तु निष्काम घर माँगने से वह शङ्का जाती रही। तव धन्य धन्य कह कर फूल बरसाने लगे। चौ०-प्रमुदित तीरथराज-निवासी। बैषानस बटु गृही उदासी ॥ कहहिं परस्पर मिलि दसपाँचा । भरत सनेहसील सुचि साँचा ॥१॥ तीर्थराज में रहनेवाले वाणप्रस्थ, ब्रह्मचारी, गृहस्थ और सन्यासी चारों आश्रम के लोग दस पाँच आपस में मिल कर कहते हैं कि भरतजी का स्नेह पवित्र और शील सच्चा है ॥१॥ सुनत राम गुनग्राम सुहाये। भरद्वाज मुनिबर पहिं आये । दंड प्रनाम करत मुनि देखे । मूरतिवन्त भाग्य निज लेखे ॥२॥ रामचन्द्रजी के सुहावने गुण-समूह सुनते हुए मुनिवर भरद्वाजजी के पास आये। मुनि ने भरतजी को दण्डवत प्रणाम करते देखा. उन्हें अपना मूर्तिमान सौभाग्य समझा ॥२॥ शङ्का-प्रयाग-निवासी तो भरतजी के शील-स्नेह को प्रशंसा करते थे, फिर भरतजी राम-गुण-ग्राम कैसे सुना १ । उत्तर---रामचन्द्रजी में शुद्ध प्रेम होने ही से लोग बड़ाई करते हैं, इसको भरतजी स्वामी की प्रशंसा मानते हैं। अपनी नहीं। धाइ उठाइ लाइ उर लीन्हे । दोन्हि असीस कृतारथं कीन्हे ॥" आसन दीन्ह नाइ सिर बैठे । चहत सकुच गृह जनु भजि पैठे ॥३॥ भरद्वाजजी ने दौड़ कर भरतजी को उठा कर हृदय से लगा लिया और आशीर्वाद दे कृतार्थ किया । श्रासन दिया; भरतजी नीचे सिर करके बैठ गये, वे ऐसे मालूम होते हैं मानों भाग कर लाज के घर में पैठना चाहते हो ॥३॥ लाज का घर नहीं होता जिसमें कोई घुस सके। यह कवि की कल्पनामात्र 'अनुकधि- पया वस्तूत्प्रेक्षा अलंकार' है। मुनि पूछब कछु यह बड़ साचू । बोले रिषि लखि सील सँकोचू ॥ सुनहु भरत हम सब सुधि पाई। विधि करतब पर किछु न बसाई ॥४॥ भरतजी को यह बड़ा लोच , हुआ कि मुनिजी कुछ पूछेगे, (तब मैं क्या उत्तर दूंगा?) इस शील सोच को लन कर ऋषि बोले । हे भरत ! सुनिये, हम सब खबर पा चुके हैं, विधाता की करनी पर कुछ कश नहीं, वह अनिवार्य है ॥४॥ भरथजी ने प्रत्यक्ष में कुछ कहा नहीं, लज्जा से सिर नीचे करके श्रासन पर पैठ गये और सोचने लगे कि मुनिजी कुछ पखेंगे, तब मैं क्या कहूँगा ? मुनिजी इस छिपे वृत को समझ गये . . 1