पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/६३४

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द्वितीय सोपान, अयोध्याकाण्ड । चौ-मुनि प्रभाव जब भरत बिलोका । सब लघु लगे लोकपति लोका ॥ सुख समाज नहि जाइ बखानी। देखत बिरति बिसारहिँ ज्ञानी॥१॥ मुनिके प्रभाव को जब भरतजी ने देखा, तर उन्हें सब लोकपालों के लोक तुच्छ लगे। सुख की सामग्नियाँ पखोनी नहीं जाती हैं, उन्हें देख कर शानी भी वैराग्य भूल जाते हैं ॥१॥ आसन सयन सुबसन बिताना । बन बाटिका बिहग मृग नाना ॥ सुरभि-फूल फल-अमिय समाना । बिमल जलासय विविध विधाना॥२॥ श्रीसन, सेज, अच्छो वस्त्र और चंदोवा, पन, बगीचा, पक्षी, नाना प्रकार के मृग, सुग. धित फूल, अमृत के समान फल, अनेक प्रकार के निर्मल जलाशय ॥२॥ असन पान सुचि अमिय अमी से । देखि लोग सकुचात जमी से ॥ सुर-सुरजी सुरतरु सबही के । लखि अभिलाष सुरेस सची के ॥३॥ पविन भोजन और जलपान अमृत के समान मधुर हैं, देखकर लोग संयमी के समान सकुचा रहे हैं। कामधेनु और कल्पवृक्ष सभी के डेरे में हैं, उनको देख कर इन्द्र-इन्द्राणी को इच्छा होती है कि ऐसा ऐश्वर्य दमें कभी नहीं सुलभ हुआ ! ॥३॥ रितु-बसन्त वह त्रिबिधि बयारी । सब कहँ सुलभ पदारथ चारी ॥ सक चन्दन बनितादिक भागा । देखि हरष-बिसमय बस लोगा nen वसन्त ऋतु शोभित है, शीतल-मन्द-सुगन्धित तीनों प्रकार की बयारि बहती है, सबको चारों पदार्थ सुलभ हो रहा है। मालायें, चन्दन और स्त्री आदि भोग-विलासों को देख फर लोग हर्ष और विस्मय के वश हो रहे हैं | सय के हदयों में हर्ष और विस्मय साथ ही दोनों भावों का होना 'प्रथम समुखय अलं- कार' है। हप-मुनि का प्रभाव देख कर हुआ। विस्मय अपने संयमी होने का है कि भोग वि- लास में कैसे अनुरुक्त होऊँ । शशा-अर्थ, काम प्राप्त ही है और मुनि की आज्ञापालन धर्म है, किन्तु मोक्ष कैसे मुलभ है ? उत्तरःखामित्रत पालन में उस ऐश्वर्या में रह कर भी न भोगने में मोक्ष है । इस प्रकार चोरों पदार्थ सुलभ हैं। दो०-सम्पत्ति-चकई मरत-चक, मुनि-आयसु खेलवार । तेहि निसि आस्रम पिजरा, राखे भा भिनुसारः ॥२१॥ सम्पत्ति पकवी है, भरतजी चकवा है और मुनि की आज्ञा खेलपाड़ करने वाला बहेलिया है। उस रात को आश्रम रूपी पीजड़े में बन्द कर रक्खा, सबेरा हो गया ॥२१५॥ सम्पत्ति पर चकवीपक्षी का आरोप, भरतजी पर चकवा का प्रारोप, मुनि की आज्ञा पर खेलाड़ी बहेलिये का आरोप और आश्रम पर पिजरे का भारोपण किया गया है। चकवाचकवी का रात्रि में संयोग नहीं होता, ऐसा विधि का विधान है। यदि कोई खेल- वाड़ी रात में उन्हें पीजड़े में बन्द कर संयोगी बनाना चाहे तो भी दानों के मुख प्रतिकूल दिशा में रहेंगे और वियोग दशा में सवेरा होगा । उसी प्रकार भरतजी ऐश्वर्या से वियोगी रहे और सबेरा हो गया। .