पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/६३६

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द्वितीय सोपान, अयोध्याकाण्ड । चौ०-जड़ चेतन, मग जीव घनेरे। जे चितये प्रक्षु जिन्ह प्रक्षु हेरे । ते सब मये परम-पद-जोगू। भरत-दरस मेटा भव रोगू ॥१॥ रास्ते के असंख्यों जड़ और चेतन जीव जिसको प्रभु रामचन्द्रजी ने देखा और जिन्हों ने रामचन्द्रजी के दर्शन किये। वे सब परम-पद (मोक्ष) के योग्य हुए, किन्तु भरतजी के दर्शन से उनका संसार सम्बन्धी रोग मिट गया अर्थात् मोक्ष को प्राप्त हो गये ॥१॥ यहाँ व्यवनामूलक गूढ़ व्यङ्ग है कि रामचन्द्र जी के दर्शन से और उनके निहारने से जड़. चेतन जीव मोक्षाधिकारी हुए। उन्हों ने सुना कि राज्य-सुख -अन्य पुत्र को देने के निमित्त माता-पिता ने इन्हें वनपाल दिया है । तब उनको ऐश्वर्य ही प्रधान आदरणीय प्रतीत हुआ। यह भव-रोग लग जाने से अधिकारी मात्र हुए । जव राज्य सुख को त्याग कर भरतजी को रामचन्द्रजी के चरणों में अनुरक हुए जाते देखा तब उन्हें निश्चय हो गया कि राम-प्रेम के सामने राज्य कोई चीज़ नहीं है। तभी तो भरतजी इतने बड़े सुख का परित्याग करके राम. चन्द्रजी की शरण में जाते हैं। इससे भवरोग से छुटकारा पा गये। यह बडि बात भरत का नाही। सुमिरत जिन्हहिं राम मन माहीं । बारक राम कहत जग जेऊ । होत तरनतारन नर तेऊ ॥२॥ भरतजी के लिये यह बड़ी बात नहीं है, जिन्हें रामचन्द्रजी मन में स्मरण करते हैं। जो संसार में एक पार भी 'राम' कहते हैं वे मनुष्य स्वयम् संसार से तर जाते हैं और दूसरों को भी तार देते हैं ॥२॥ भरतजी के लिये यह बड़ी बात नहीं, इसका समर्थन विशेष सिद्धान्त से करना कि जिन्हें मन में रामचन्द्रजी स्मरण करते हैं 'अर्थान्तरन्यास अलंकार' है। भरत राम प्रिय पुनि लघु भ्राता । कस न होइ मग मङ्गल-दाता ॥ सिद्ध साधु मुनिबर अस कहहीं । भरतहि निरखिहरपहिय लहहीं ॥३॥ भरतजी रामचन्द्रजी को प्यारे हैं फिर उनके छोटे भाई हैं, उन को मार्ग मङ्गलदायक क्यों न हो ? सिद्ध, साधु और मुनिवर ऐसा कहते हैं और भरतजी को देख कर हृदय में होते हैं ॥३॥ देखि प्रभाव सुरेसहि सोचू । जग भल मलेहि पाच कहँ पोचू । । गुरु सन कहेउ करिय प्रभु साई। रामहि भरतहि भैंट न होई ॥ भरतजी के प्रसाव (प्रेम की महिमा) को देख कर इन्द्र को सोच हुभो, संसार भले को भला और बुरे को बुरा दिखाई देता है । देवपति ने गुरु से कहा-प्रमे। वही उपाय कौजिये जिसमें रामचन्द्रजी से भरत की भेट न हो ॥४॥ भले को भला तथा पोव को पोच, इन वाक्यों में पद और अर्थ की प्रवृत्ति होने से ‘पदार्थावृत्ति दीपक अलंकार' है। प्रसन