पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/६४

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड । १३ लखि सुबेष जग बञ्चक जेऊ । बेष प्रताप पूजियहि तेऊ । उघरहि अन्त न हाइ निबाहू । कालनेमि जिमि रावन राहू ॥ ३ ॥ जो ससार.को उगवाले हैं, उन्हें भी अच्छा वेप बनाये देख कर वेष के प्रताप से लोग पूजते ही हैं । अन्त में कपट खुल जाने पर उनकी रहायस नहीं होती, जैसे-कालनेमि, रावण और राहु की गति हुई थी॥३॥ कालिनेमि और रावण ने यती वेष बना कर और राहु ने देवता बन कर उगबाज़ी की कलई खुल जाने पर तीनों मारे गये। किये कुधेष साधु सनमानू । जिमि जग जामवन्त हनुमानू ॥ होनि-कुसङ्ग सुसङ्गति-लाहू । लोकहु बेद विदित सब काहू ॥ ४ ॥ फुवेष किए रहने पर भी साधु का सम्मान ही होता है, जैसे संसार में जाम्बवान और हनूमान । यह लोक में तथा वेद में प्रसिद्ध है और सब को मालूम है कि कुसङ्ग से हानि . और सुसङ्ग से लाभ होता है ॥ ४ ॥ गगन चढ़इ रज पवन प्रसङ्गा । कोचहि मिलइ नीच जल सङ्गा ॥ साधु-असाधु-सदन सुक सारी । सुमिरहिं राम देहि गनि गारी ॥ हवा के सह से धूल आकाश पर चढ़ती है और नीच जल के साथ से कीचड़ में मिलती है। साधुओं के घर में (पलनेवाले ) सुग्गा-मैना राम-राम स्मरण करते हैं और असाधुओं के घरवाले गिन गिन कर गालियाँ देते हैं ॥५॥ धूम कुसङ्गति कारिख होई । लिखिय पुरान मज्जु मसि साई ॥ सोइ जल अनल अनिल सङ्घाता । होइ जलद जग-जीवन-दाता ॥६॥ कुसङ्ग में पड़ कर धुनाँ कारिखं होता है, वही पुराणं लिखने पर सुन्दर स्याही कहलाता है । वही (धूम) पानी, अग्नि और वायु के सङ्ग से संसार को जीवन (जल) देनेवाला बादल होता है ॥६॥ दो०--ग्रह भेषज जल पवन पट, पाइ कुजोग सुजोग । होहिं कुबस्तु सुबस्तु जग, लखहि सुलच्छन लोग । ग्रह, औषधि, पानी, हा और वस्त्र कुसङ्ग सुसन पाकर (सङ्ग के प्रभाव से) अच्छी वस्तु बुरी चीज़ हो जाती है, इसको सुलक्षण (चतुर) लोग लखते हैं । सम प्रकास तम पाख दुहुँ, नाम भेद बिधि कीन्ह । ससि पोषक सेोषक समुझि, जग जस अपजस दीन्ह ॥ दोनों पाखों में उँजेला और अँधेरा घराबर होता है, पर विधाता ने नाम में अंतर कर