पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/६६५

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रामचरित मानस । चौ०-बिकल सनेह सीय सब रानी । बैठन सबहि कहेउ गुरु ज्ञानी। . कहि जन-गति मायिक मुनिनाथा । कहे कछुक परमारथ-गाथा ॥१॥ सीताबी और सब रोनियाँ स्नेह से विकल हैं, शानी गुरु वशिएजी ने सबको बैठने के लिये कहा । मुनिराज ने माया से की हुई संसार की गति को (मिथ्या) कह पर फिर कुछ परमार्थ की कथा कही ॥२॥ इन वापयों में व्यजनामूलूक गूढ़ व्या है कि राज्योत्सव भा होने से नगर के लोगों को जो दुःख हुआ वह झूठा मायिक है। राजा का सत्यवत पालन और भाप का पिता के वक्षनानुसार धर्म में अनुरक होना परमार्थ है। हप कर सुरपुर-गवन सुनावा । सुनि रघुनाथ दुसह दुख पावा । मरन-हेतु निज-नेह बिचारी । भै अति विकल धीर-धुर-धारी ॥२॥ राजा का देवलोक-गमन सुनाया, सुन कर रघुनाथजी असहनीय दुःख को प्राप्त हुए। मरने का कारण अपना हनेह विचार कर धीर धुरन्धर रामचन्द्रजी बहुन ही व्याकुल हुए ॥२॥ कुलिस-कठोर सुनत कटु बानी। बिलपत लखन सीय सघ रानी ॥ सोक बिकल अति सकल समाजू । मानहुँ राज अकाजेउ आजू ॥३॥ वन के समान कठोर कड़वी वाणी सुनते ही लक्ष्मएजी, सीताजी और सकरानियाँ रुदन करने लगी । सम्पूर्ण समाज अत्यन्त शोक से विकल हो गया, ऐसा मालूम होता है मानों राजा का शरीरान्त आज ही हुआ हो ॥३॥ सुनिबर बहुरि रोम समुझाये । सहित समाज सुसरित नहाये ॥ व्रत निरम्बु तेहि दिन प्रभु कीन्हा । सुनिहु कहे जल काहु न लीन्हा॥४॥ फिर मुनिवर ने रामचन्द्रजी को समझाया, समाज के सहित सुन्दर (मन्दाकिनी) नदी में स्नान किया। उस दिन प्रभु रामचन्द्रजी ने निर्जल व्रत किया और मुनि के कहने से किसी ने जता नही ग्रहण किया अर्थात गुरूजी ने कहा कि जब रघुनाथजी निर्जल प्रत करते हैं, तब हम लोगों को भी वैसा ही करना चाहिये, जलपान करना उचित नहीं ॥४॥ सभा की प्रति में 'सुरसरित न्हाये' पाठ है, उपयुक्त पाठ का छक्कनलाल को पाठ मान कर अप्रधानता दी गई है, किन्तु राजापुर की प्रति में 'सुसरित नहाये' पाठ है जिससे सभा की प्रति का पाठ बनावटी सिद्ध होता है। तिलककार ने चौपाई के अन्तिम चरण का बहुत ही विलक्षण अर्ध किया है कि-"यद्यपि वशिष्टजी ने कहा तो भी किसी ने जल नहीं पिया।" रामचन्द्रजी निर्जल व्रत करें और ज्ञानी गुरु ऐसे गये धोते उहरे कि अयोध्या वासियों को जलपान का उपदेश दे और पुरजन गुरु के आदेश का तिरस्कार कर निर्जल व्रत करें। जिन गुरुजी की आशा रामचन्द्रजी नहीं टाल सकते, उनकी बात पुरयासी न मानें! कैसा गुरु-सम्मान का भाव-पूर्ण अर्थ है। 1