पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/६९७

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रामचरित मानस । ६३६ मिलने को आया। कौशल्याजी ने प्रादर के साथ सत्कार किया और समयानुसार डा.कर. ओसन दिये ॥२॥ लील सनेह सकल दुहुँ औरा । द्रवहिँ देखि सुनि कुलिस कठोरा । पुलक सिथिल सलुजारि बिलोचन । महि नखलिखन लगी सब सोचन ॥३॥ सम्पूर्ण (रानियों में) दोनों ओर शील और स्नेह इतना अधिक है कि जिसे देख सुन बर कठिन वन भी पिघल जाता है। उनके शरीर पुलकित और शिथिल हुए आँखों में आँसू भरे हैं, सब लोच करती हुई नख से धरती पर लिखने लगी ||३|| लियाँ सोच के समय पद-नखों से पृथ्वी खोदने लगती हैं। गुटका में 'सील-सनेह-सरस दुहुँ ओर' पाठ है, परन्तु राजापुर की प्रति में सरस की जगह सकल है। अर्थ करने में सरस (अधिकत्व) अध्याहार से लाना पड़ता है, उसके बिना रोचकता नहीं पाती। . सब सिय-राम प्रेम कि सि भूरति । जनु करुना बहु बेष बिसूरति ॥ सीय-मातु कह बिधि बुधि बाँकी । जो पय-फेन फोर पबि टाँकी ॥१॥ सब सीताजी और रामचन्द्रजी के प्रेम की मूर्ति के समान हैं, ऐसी मालूम होती हैं भानों बहुत रूपों से करुणा सिसकती हो । सीताजी की माता ने कहा, विधाता की बुद्धि टेढ़ी है जो दूध के फेन को वन की टाँसी से फोड़ता है hem दो सुनिय सुधा देखिय गरल, सब करतूति कराल । जह तह काक उलूक बक, मानस सकृत मराल ॥२८॥ अमृत सुना जाता है और विष देखने में आता है. ब्रह्मा की सारी करनी भयङ्कर है। कौना, उल्लू और बकुला जहाँ देखिये वहाँ (दिखाई पड़ते हैं, परन्तु)हंस एक मानसरोवर ही में देखे जाते हैं ॥२॥ सुनयनाजी को कहना तो यह है कि केकयी की बुद्धि देती है जो उसने रामचन्द्रजी को वनवास दिया । सुना था कि इसके पोठों में अमृत है, उसे पान फर राजा जीते हैं, पर उसी से राजा की मृत्यु आँखों देखी। इस के हृदय-मानस में छल, पाखण्ड, द्वेष आदि कौए उल्लू भरे हैं, एक भरत ही हंस रूप प्रकट हैं । उसे न कह कर ब्रह्मा की करतूत वर्णन कर प्रतिबिम्ब मात्र कहना 'ललित अलंकार' है। पुनः कहना ता है कार्य रूप रामचन्द्रमी का राज्योत्सव मग और वनवास, उसे सीधे न कह कर कारण रूप ब्रह्मा की बामता कहना जिससे असंती बात प्रकट हो जाय 'अप्रस्तुत प्रशंका अलंकार दोनों का सन्देहसर है। चौ०-सुलि ससोच कह देधि सुमित्रा। विधिगिति बडि बिपरीत बिचित्रा। जो सृजि पालइ हरइ बहोरी । बालकेलि सम विधि मति भारी॥१॥ सुन कर सोच से सुमित्रादेवी ने कहा कि-विधाता की गति बड़ी उलटी और विलक्षण है । जो जगत को उत्पन्न करके पालन करता; फिर संहार कर डालता है, बालकों के खेल के समान ब्रह्मा की बुद्धि भोली (नशान से भरी) है ॥१॥