पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/७२०

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. वित्तीय सोपान, अयोध्याकाण्ड । जौं बिनु अवसर अथव दिनेस । जग केहि कहहु न हाइ कलेसू ॥ तस उतपात तात बिधि कीन्हा। मुनि मिथिलेस राखि सब लीन्हा neu यदि विना समय सूर्य अस्त हो जाय तो कहिये, संसार में किसको कष्ट न होगा? विधाता ने वैसा ही उत्पात किया, पर हे तात ! मुनि वशिष्ठजी और मिथिलेश्वर ने सब तरह से रखवाली कियाnan कहना तो यह है कि बिना समय की मृत्यु से सभी को बड़ा फष्ट हुआ। सीधे इसे न कह कर अनवसर सूर्यास्त की पात कह कर असली वृत्तान्त प्रकट करना 'ललित अलंकार' है। दोश-राजकाज सब लाज पति, धरम धरनि धन धाम । गुरु प्रभाउ पालिहि सबहि, मल होइहि परिनाम ॥३०॥ सब राज्य का कार्य, लाज, प्रतिष्ठा, धर्म, धरती, धन और महल गुरुजी के प्रभाव से सभी का पालन कीजिये, इसका फल (नतीजा) अच्छा होगा ॥३०५॥ चौ०-सहित समाज तुम्हार हमारा । घर बन गुरुप्रसाद रखवारा ॥ मातु पिता गुरु स्वामि निदेसू । सकल धरम धरनी-धर-सेसू ॥१॥ समाज के सहित तुम्हारा हमारा घर वन में रक्षा करनेवाला 'गुरुजी का अनुग्रह है। माता, पिता, गुरु और स्वामी की आशा जो पालन करता है वह सम्पूर्ण धर्म रूपी धरती का धारण करनेवाला शेषनाग है ॥१॥ सो तुम्ह करहु करावहु मोहू । तात तरनिकुल पालक होहू साधन एक सकल सिधि देनी । कीरति सुगति मूति-मय बेनी ॥२॥ वह (धम पालन) आप करें और मुझे कराकर सूर्यकुल के रक्षक हों। एक यही साधन सम्पूर्ण सिद्धियों का देनेवाला है, कीर्ति सुन्दर गति (मोक्ष) और ऐश्वर्य ले भरी त्रिवेणी है ॥२॥ सो बिचारि सहि सूट भारी । करहु मजा परिवार सुखारी । बाँटी बिपति सबहि माहि माई । तुम्हहि अवधिमरि बड़ि कठिनाई॥३॥ वह (धर्म) सोच कर भारी सङ्कट सहन करके प्रजा और परिवार को मुखी कीजिये। हे भाई ! आपने मुझ से सभी विपत्ति बाँट लो, अवधि (१४ वर्ष) पर्यन्त आप को बड़ी कठिनता है ॥३॥ सभा की प्रति में 'बादी विपति' पाठ है और 'बाटो विपति' को पान्तर कहा गया है। परन्तु जब राजापुर की प्रति में 'बाँटो' पाठ है, तब सभा की प्रति का पाठ पागन्तर सिद्ध होता है