पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/७७५

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। रामचरित-मानसे। जिन्ह कर भुज-बल पाइ दसानन । अभय भये विचरत मुनि कानन ॥ देखत समानो । परम धीर धन्वी गुन नाना ॥३॥ हे दशानन ! जिनको भुजाओं का बल पा कर मुनि लोग निर्भय हो धन में विचरते हैं। देखने में बालक हैं, पर वे काल के समान बड़े ही धीर और अनेक प्रकार के धनुर्षिया के गुण के ज्ञाता हैं ॥३॥ अतुलित बलप्रताप दोउ शाता । खल-बधरत सुर-मुनि-सुख-दाता । सामा-धाम राम अस नामा । तिन्ह के लक्ष नारि एक स्यामा ॥४॥ • दोनों भाइयों का बल और प्रताप तोल है, दुम्टो के संहार में तत्पर और देवता तथा मुनियों को सुख देनेवाले हैं। शोमा के स्थान जिनका राम ऐसा नाम है, उनके सङ्ग में एक सोलह वर्ष की अवस्थाचाली स्त्री है॥४॥ सूप-रासि विधि नारि सबारी । रति सतकोटि तासु बलिहारी॥ तालु अनुज काटे खुति नासो । सुनि तव भगिनि करहि परिहासा ॥५॥ उस रूप की राशि स्त्री को ब्रह्मा ने सँवारा है, असंख्यों रति उसकी शोमा पर न्यो- छावर है। उसके छोटे भाई ने मेरी नाक और कान काटा है, वे तुम्हारी बहिन सुन कर मुझ से हँसी करने लगे ५॥ खर-दूषन्न सुनि लगे पुकारा । छन महँ सकल कटक, उन्ह मारा । खर-दूधन-त्रिखिरा कर घाता। सुनि दससीस जरे सब गाता ॥६॥ मेरी पुकार सुन कर खर और दूषण (गोहार करने में) उन्होंने समस्त सेना को क्षणभर में मार डाला। खर, दूखण और निशिरा का वध सुन कर रावण के सब अङ्ग जल गये ॥३॥ 'रावण के सब अङ्ग जले इस पाक्य में मुख्यार्थ बाध हो कर क्रोध से तप्त होना अर्थ प्रकट करने में 'रूढ़ि लक्षणा' है। दो-सूपनखहि समुझाइ करि, अल बालेसि बहु भाँति । गयउ भवन अलि सोच बस, नींद परइ नहिँ राति ॥२२॥ बहुत तरह से अपना बल वखान शूर्पणखा को समझा महल में गया । अत्यन्त सोच के अधीन होने से रात में नींद नहीं आई ॥ २२॥ चौफ-सुर नर असुर नाग खग माहीं। मारे अनुचर कहँ कोउं नाहौँ । खर दूषन भोहि समबलवन्ता। तिन्हहि कोमारइबिनु भगवस्ता पलंग पर पड़े पड़े सोचता है कि देवता, मनुष्य, दैत्य, नाग और पक्षियों में मेरे नौकरों की बराबरी का कोई नहीं है । वर और दूषण मेरे समान बली थे, विना भगवान् के उनको कौन मार सकता है । ॥१॥ 1