पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/७८४

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७२३ तृतीय सोपान, अरण्यकाण्ड । सहित जोनते हैं। समीप आने पर-जाना कि यह बुडूढा जटायु है, मेरे हाथ रूपी तीर्थ में शरीर त्यागेगा ॥७॥ सुनत गीध क्रोधातुर धावा । कह सुनु रावन मार सिखावा । तजि जानकिहि कुसल गृह जाहू । नाहित अस होइ हि बहुबाहू ॥८॥ सुनते ही गीध क्रोधित होकर दौड़ा और कहा है रावण ! मेरा सिसावन सुन । जानकी को छोड़ कर कुशल ले घर जाओ, नहीं तो हे बहुत भुजावाले ! ऐसा होगा कि-॥॥ शंका-रावण ने अनुमान के सिवा प्रत्यक्ष में कुछ नहीं कहा, फिर विना कुछ कहे जटायु ने कैले सुन लिया ? उत्तर कथा भाग में कहीं प्रश्न से उत्तर की और उत्तर से प्रश्न की कल्पना होती है। यहाँ सुनत गीध से रावण का कहना सूचित होता है । गीध का गृह अभिप्राय रावण को दम्भ निवारण कर सीताजो को छुड़ाना है । यह कल्पित प्रत का 'गूढोत्तर अलंकार' है। राम-रोष-पावक अति-घोरा । होइहि सलम सकल-कुल तारा ॥ उतर न देत दसानन जोधा । तबहिं गीध धावा करि क्रोधा ॥६॥ रामचन्द्रजी का क्रोध अत्यन्त भीषण अग्नि रूप है, उस में तेरा सम्पूर्ण कुटुस्य पाँखी सपी होकर भस्म होगा। योद्धा रावण ने जब उत्तर नहीं दिया, तब गीध क्रोध कर के दौड़ा॥६॥ धरि कच बिरथ कीन्ह महि गिरा । सीतहि राखि गीध पुनि फिरा । चोचन मारि पिदारेसि देही । दंड एक भइ मुरछा तेही ॥१०॥ रावण के बाल पकड़ कर पिना रथ के कर दिया वह धरती पर जागिरा, सीताजी को। (बग्ने स्थान पर) रख कर फिर गीध लौटा। चोंच से मार कर शरीर फाड़ डाला, रावण को एक घड़ी तक मूर्छा हुई ॥१०॥ तब सोध निसिचर खिसियाना । काढ़ेसि परम कराल रूपाना ॥ काटसि पल परा खग घरनी । सुमिरि राम करि-अद्भुत-करनी ॥११॥ (जब मूछों से जगा) तब वह राक्षस क्रोध से खिलिया गया और अत्यन्त भीषण तल- बार म्यान से निकाला । जटायु के पक्ष काट डाले, वह पक्षी अद्भुत करनी कर के रामचन्द्रजी का स्मरण करते हुए पृथ्वी पर गिर पड़ा॥११॥ 'करि अद्भुत करनी' में शब्दार्थ शक्ति से जटायु की अतिशय शुरता व्यजित होनी ध्यङ्ग है। रावण जैसे विकट योद्धा को चोंच की मार से विदीर्ण और व्याकुल कर के तर धरती पर गिरा, सहज में नहीं। इस चौपाई का जो यह अर्थ किया जाता है कि- रामचन्द्र जी की अद्भुत करनो स्मरण कर के जटायु धरती पर गिर पड़ा' सर्वथा भ्रान्ति मूसक है।