पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/८०

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड । चौ०-बन्दउँ नाम राम रघुबर को । हेतु कृसानु-भानु-हिमकर को । बिधि-हरि-हर-मय-बेद-पान से। अगुन अनूपम गुन-निधान सो ॥१॥ रघुकुल में श्रेष्ठ रामचन्द्रजी के नाम के अक्षरों की मैं वन्दना करता हूँ, जो अग्नि, सूर्य और चन्द्रमा को उत्पन्न करने के श्रादि कारण हैं (र-अ-म, राम-नामे में थे तीन अक्षर हैं, तीनों अक्षर क्रमशः) ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप एवम् वेदों के प्राण समान हैं, निर्गुण उपमारहित और गुणों के भण्डार हैं ॥१॥ राम शब्द पहले कह कर फिर अक्षरों के क्रमानुसार रकार को अग्नि का, अकार को सूर्य का और मकार को चन्द्रमा का श्रादि कारण कहना 'यथासंख्य अलंकार' है। निर्गुण भी और गुण के निधान भी! इस कथन में 'विरोधाभास अलंकार' दोनों की संसृष्टि है। टीकाकारों ने इस स्थान पर अर्थ का बहुत बड़ा विस्तार किया है, पर सुगमता के लिए हमने संक्षेप में वर्णन किया। महा मन्त्र जोइ जपत महेसू । कासी मुकुति हेतु उपदेसू ॥ महिमा जासु जान गनराऊ । प्रथम पूजियत नाम प्रभाऊ ॥" जिस महामन्त्र को शिवजी जपते हैं, जिसका उपदेश ही काशी में मोक्ष का असली कारण है और जिसकी महिमा को गणेश जी जानते हैं । नाम ही के प्रभाव से वे प्रथम पूजे जाते हैं ॥२॥ पुराणों में ऐसी कथा प्रसिद्ध है कि एक बार कुतूहल वश ब्रह्माजी ने देवताओं से पूछा कि तुम लोगों में सर्वश्रेष्ठ पूजनीय कौन है ? इस पर सभी देवता हम हम कर के बोल उठे। ब्रह्मा ने कहा-जो पृथ्वी की परिक्रमा कर सब से पहले हमारे पास आवेगा, हम उसी को प्रथम पूज्यपद प्रदान करेंगे। यह सुन कर सब देवता अपने अपने वाहनों पर सवार होकर दौड़े । गणेशजी का वाहन चूहा पिछड़ गया, इससे वे चिन्तित हुए। उसी समय वहाँ नारदजी आ गये। उन्होंने कहा 'रामः नाम में असंख्यों ब्रह्माण्ड भरे हैं, पृथ्वी पर नाम लिख कर परिक्रमा करके ब्रह्माजी के पास जाइये । गणेशजी ने विश्वास-पूर्वक वैसा ही किया और जाकर विरञ्चि से निवेदन किया । राम नाम के प्रभाव को समझ कर विधाता ने गणेशजी को प्रथम पूज्य पद दिया। जान आदिकबि नाम-प्रतापू । भयउ सुद्ध करि उलटा जापू ॥ सहस-नाम-सम सुनि सिव बानी । जपि अँई पिय सङ्ग भवानी ॥३॥ आदिकवि वाल्मीकिजी नाम के प्रताप को जानते हैं, जो उलटा जाप कर के शुद्ध हुए। पार्वतीजी ने शिवजी के मुख से सुना कि रामनाम का एक बार उच्चारण सहस्रनाम के बराबर है, तब उन्होंने राम नाम जप कर पति के साथ भोजन किया ॥ ३ ॥ राम नाम के उलटे (मरा मरा) जाप से वाल्मीकि का शुद्ध होना 'प्रथम उल्लास अलंकार' है । वाल्मीकि मुनि के सन्वन्ध की टिप्पणी इसी काण्ड में दूसरे दोहे के आगे दूसरी चौपाई के नीचे देखो । गुटका में जान आदि कवि नाम प्रमाऊ । भयेउ सुद्ध कहि उलटा नाऊँ