पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/८१०

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चतुर्थ सोपान, किष्किन्धाकाण्ड । ७१७ इटहानि के भय से सुग्रीव का भयभीत होना 'शक्षा संचारीभाव' है । माहाण अवध्य होते हैं, इसलिए ब्रह्मचारी का रूप धारण करने को कहा। पठये बालि होहिँ मन मैला । मागउँ तुरत तजउँ यह सैला ।। बिम रूप धरि कपि तहँ गयऊ । माथ नाइ पूछत्त अस भयऊ ॥३॥ थाली के भेजे हुए थे मन के मैले (कपटी) हो तो मैं तुरन्त इस पर्वत को छोड़ कर भाग जाऊँ। हनूमानजी ब्राह्मण का रूप धारण करके वहाँ गये और मस्तक नवा इस तरह पूछते भये ॥३॥ शंका-रामचन्द्रजी क्षत्रिय शरीर में हैं और हनूमानजी ब्राह्मण के रूप में आये, फिर भी उन्होंने रघुनाथजी को प्रणाम किया. इसका क्या कारण है ? उत्तर-ईश्वर के सन्मुख कपट नहीं चलता, अपूर्व तेज देख कर सिर झुक गया। अथवा आश्रम के विचार से रघु. नाथजी वाणप्रस्थ हैं और हनुमानजी ब्रह्मचारी हैं, इससे प्रणाम किया । अथवा धर्मशास्त्र की आशा है कि तीर्थ या पन में कोई वेजस्वी देख पड़े तो उसमें देव बुद्धि मान कर उसे नम- स्कार करना चाहिये, एतदर्थ प्रणाम किया। इसके अतिरिक्त मी बहु प्रकार के तर्क विद्वान् बीरा ॥ को तुम्ह ल्यामल गौर सरीरा । छत्री रूप फिरहु बन कठिन-भूमि कोमल-पद-गामी । कवन हेतु चिचरह बन स्वामी ॥४॥ श्यामल-गौर शरीरवाले, क्षत्रिय रूप, वीर पुरुष, वन में फिरते हुए श्राप लोग कौन हैं ? कठोर धरती पर कोमल चरणों से गमन करते हैं, हे स्वामिन् ! किस कारण से जंगल में विचर रहे हैं ॥४॥ मृदुल मनोहर सुन्दर गातो । सहत दुसह बन आतप-बाता ॥ की तीनि देव महँ कोऊ । नर-नारायन को तुम्ह दोऊ ॥५॥ श्राप के कोमल मनोहर सुन्दर अंग हैं, वन के न सहने योग्य वाम और लू सहते हैं। . क्या आप प्रमा, विष्णु, महेश त्रिदेवों में से कोई हैं ? या कि भाप दोनों नर-नारायण हैं? ॥५॥ दो०-जग-कारन तारन-भव, भजन घरनी भार। की तुम्ह अखिल-भुवन-पति, लीन्ह मनुज अवतार ॥१॥ जगत् के कारण, संसार से पार उतारनेवाले, धरती का बोझ नसानेवाले और सम्पूर्ण लोकों के स्वामी; क्या आप मनुष्य का अवतार लिये हैं ? ॥१॥ हनुमानजी का यह कहना कि श्राप त्रिदेवों में कोई हैं ? या नरनारायण हैं १ या जगत् के कारण अखिल भुवनेश्वर मनुष्य अवतार लिये हैं। किसी एक बात का निश्वय न होना 'संदेह अलंकार है।