पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/८१७

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ढहाये ॥६॥ ७५४ रामचरित-मानस । सेवक-सठ हप-कृपिन कुनारी। कपटी-मित्र सूल सम चारी। सखा सोच त्यागहु बल मोरे। सब विधि घटव काज मैं तोरे ॥५॥ मूख सेवक, कजूस राजा, दुष्टा स्त्री और कपटी मित्र ये चारों शूल के समान हैं । हे मित्र ! तुम मेरे बल के भरोसे पर लोच छोड़ दो, मैं सब तरह तुम्हारे काम को पूरी करूँगा ॥५॥ मूर्ख सेवक, रुपण राजा, दुष्टा, स्त्री और छली मिन इन चारों का एक ही धर्म शता के समान होना कथन 'प्रथम 'तुल्पयोगिता अलंकार' है। कह सुग्रीव सुनहु रघुबीरा । बालि महाबल अति-रनधीरा॥ दुन्दुमि अस्थि ताल देखराये। बिनु प्रयास रघुनाथ सुग्रीव ने कहा-हे रघुवीर । सुनिए, पाली महाबली और अत्यन्त रणधीर है। दुन्दुभी की हड्डी और ताल के वृक्षों को दिखाया, रघुनाथजी ने धिना परिश्रम ही उन्हें ढहा दिया ॥६१ सुग्रीव ने रामचन्द्रजी के बल की परीक्षा लेनी चाही। कहा कि बालो को .वही मार सकेगा जो दुन्दुभी दैत्य की हड्डी हटावेगाऔर सातो ताल के वृक्षों को एक बाण से बेघ देगा। रामचन्द्र जी तुरन्त परीक्षा देकर उत्तीर्ण हुए, 'तृतीय सम अलंकार' है। एक पार दुन्दुभी दैत्य भैसे का रूप बना कर किष्किन्धा के पास आकर गर्जा । बाली ने दौड़ कर तुरन्त ही उसे मार डाला और उसका सिर तोड़ कर ऋष्यमूक पर्वत पर फेक दिया। वह मतंग ऋषि के आश्रम में गिरा जिससे वहाँ रक को धारा बह चली । ऋषि ने कुपित होकर शाप दिया कि यदि बाली इस पर्वत पर भावेगा तो उसका सिर फट जायगा और वह मृत्यु को प्राप्त होगा। इसी से बाली उस पहाड़ पर नहीं जाता था। दैत्य के.सिर.की हड्डी कोई उठा नहीं सकता था उसको पैर के ठोकर से रामचन्द्रजी ने चालीस कोस की दूरी पर फेंक दिया। सात ताल के वृक्ष जो चाली के सिवाय किसी से हिल भी नहीं सकते थे, उन्हें एक ही बाण से रामचन्द्रजी ने जमीन पर गिरा दिया। देखि अमित बल बाढ़ी भीती । बालि बधब इन्ह भइ परतीती ॥ बार बार नावा पद सीसा । प्रभुहि जानि मन हरष कपीसा ॥७॥ अतुल पराक्रम देख कर प्रीति बाढ़ी और विश्वास हुआ कि ये वालो को मार डालेंगे। बारमबर चरणों में सिर नवाते हैं, स्वामी को जान कर वानरराज-सुग्रीव मन में प्रसन्न हुए ॥७॥ उपजा ज्ञान बचन तब बाला। नाथ कृपा मन सुख सम्पति परिवार बड़ाई। सब परिहरि करिहउँ सेवकाई ॥८॥ जय सुनीव को ज्ञान उत्पन्न हुआ तबावे वचन बोले हे नाथ । आप को कृपा से मेरो मन चञ्चल (शान्त) हो गया। सुख, सम्पत्ति, कुटुम्ब और बड़प्पन सब त्याग कर आप की सेवकाई करूंगा तत्वानुसन्धान द्वारा सुपीव को शानलाम होना मिति सञ्चारीमाव' है । भयउ अलोला।