पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/८२

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड । ३१ प्रायः लोग 'बरनत वरन प्रीति बिलगातार पाठ मान कर इस तरह अर्थ करते हैं कि- घर्णन करने में अक्षरों की प्रीति अलग हो जाती है। पर इस अर्थ से आगे के उदाहरण से विरोध पड़ता है। यहाँ तो कहने का यह भाव है कि दोनों अक्षरों की ऐसी अभिन्न प्रीति है, ब्रह्म और जीव को स्वाभाविक साथ। नर-नारायन-सरिस सुभ्राता । जग पालक बिसेष जन त्राता ॥ भगति-सुतिय कल करन-बिभूषन । जग-हित-हेतु बिमल बिधु-पूषन ॥३॥ नर-नारायण के समान (दोनों) श्रेष्ठ बन्धु हैं, जगत के पालक, विशेष करके जनों के रक्षक हैं। भक्ति रूपी सुन्दर स्त्री के कानों के मनोहर आभूषण हैं और संसार के कल्याण के लिए चन्द्रमा एवम् सूर्य हैं ॥ ३ ॥ स्वाद तोष सम सुगति सुधा के । कमठ सेष सम घर बसुधा जन-मन-मजजु-कच-मधु कर से । जीह जसमिति हरि हलधर से ॥४॥ मोक्ष रूपी अमृत के (दोनों वर्ण) खाद और सन्तोष के समान हैं, धरती को धारण करने में कच्छप और शेषनाग के बराबर हैं, भक्तों के मन रूणे सुन्दर कमल (को पोषण करने) के लिए जल और किरण के तुल्य हैं, और जिहा रूपी यशोदा [ को प्रसन्न करने के लिए श्रीकृष्णचन्द्र और बलरामजी के समान हैं ॥४॥ 'मधुकर शब्द समर का बोधक नहीं, जल और सूर्य की किरण से प्रयोजन है जो कमल के पोषण करनेवाले हैं। दो०-एक छत्र एक मुकुट-मनि, सब बरनन्हि पर जोउ । तुलसी रघुबर नाम के, बरन बिराजित दोउ ॥२०॥ एक (रेफ-क्षत्र हो कर और दूसरा [ विन्दु-रूप] मुकुट मणि हो कर जो सब वों पर रहते हैं। तुलसीदासजी कहते हैं कि रघुनाथजी के नाम के अक्षर (रकार और मकार) दोनों इस तरह विराजमान होते हैं ॥२०॥ रकार, मकार सब वर्गों के सिर पर विराजते हैं । इस यात का समर्थन युक्ति से करना कि रकार, रेफ होकर और मकार विन्दु होकर 'कान्यलिंग अलंकार है। चौ०-समुझत सरिस नाम अरु नामी । प्रीति परसपर प्रभु अनुगामी ॥ नाम रूप दुई ईस उपाधी । अकथ अनादिसुसामुझि साधी॥१॥ नाम और नामी (राम-नाम और रामचन्द्र) समझने में बराबर हैं, इनकी प्रीति प्रापस में स्वामी सेवक के समान है। नाम और रूप दोनों ईश्वर के प्रतिष्ठासूचक-पद हैं, जो कहने की सामर्थ्य के बाहर अनादि हैं, अच्छी समझ से जाने जाते हैं ॥१॥ को बड़ छोट कहत। अपराधू । सुनि गुन भेद समुझिहहिँ साधू ॥ देखिअहि रूप नाम-आधीना । रूप-ज्ञान नहि नाम बिहीना ॥२॥ कौन बड़ा और कौन छोटा है ? 'यह कहने में दोष होगा, इनके गुण के अन्तर को सुन कर सज्जन लोग समझ लेंगे कि कौन बड़ा और कौन छोटा है । नाम के अधीन रूप देखने में माता है, पर नाम के बिना रूप का परिज्ञान नहीं होता ॥२॥ .