पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/८४९

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रामचरित-मानस । सहित सहाय गवनहिँ मारी। आनउँ इहाँ त्रिकूट उपारी ॥ जामवन्त मैं पूछउँ ताही । उचित सिखावन दीजेह माही ॥५॥ सहायक समेत रावण को मार कर और त्रिकूट पर्वत को उखाड़ कर यहाँ ले पाऊँ । हे जाम्बवान् ! मैं श्राप से पूछता हूँ, मुझे उचित सिखावन दीजिए (वह क)॥५॥ एतना करहु तात तुम जाई । सीतहि देखि कहहु सुधि आई। तब निज-भुज-बल राजिवनयना। कौतुक लागि सङ कपि-सैना ॥६॥ जाम्बवान ने कहा हे तात आप जाकर इतना करें कि सीताजी को देख कर आवें और उनकी खबर कहे । तब कमल-नैन भगवान कुतूहरू के लिए साथ में वानरों की सेना ले कर अपनी भुजाओं के बल से (सीताजी को ले चलेंगे)॥६॥ हरिगीतिका-छन्द । कपि सेन सङ्ग सँघारि निसिचर, राम सीतहि आनिहैं । त्रैलेोक पावन सुजस सुर मुनि, नारदादि बखानिहैं ॥ जा सुनत गावत कहत समुझत, परमपद नर पावई । रघुबीर-पद-पायोज मधुकर, दासतुलसी गावई ॥३॥ वानरों की सेना के साथ राक्षसों का संहार कर के रामचन्द्रजी सीताजी को ले प्राधेगे। त्रिलोकी को पवित्र करनेवाले उनके शुद्ध यश को देवता, और नारद आदि मुनीश्वर बखान करेंगे। उसको जो मनुष्य सुनेंगे, गायग, कहेंगे और समझेगे वे परम-पद (माक्ष) पावेगे। उस (यश) को रधुनाथजी के चरण-कमलों का भ्रमर तुलसीदास गान करता है ॥३॥ दो-भव-भेषज रघुनाथ-जस, सुनहिँ जे नर अरु नारि । तिन्ह कर सकल मनोरथ, सिद्ध करहिं त्रिसिरारि ॥ संसार रूपी रोग के लिए रघुनाथजी का यश औषध रूपी है, उसको जो पुरुष और खी सुनेगी । उनके सम्पूर्ण मनोरथ शिवजो पूरा करेंगे। सो-नीलोत्पल-तन-श्याम, काम-कोदि-सामा अधिक । सुनिय तासु गुन-ग्राम, जासु नाम अघ-खग-बधिक ॥३०॥ जिनका शरीर नील कमल के समान श्याम है और जिनको शोभा करोड़ों कामदेव से चढ़ कर है। उनके गुण-समूह सुनिए, जिनका नाम पाप रूपी पक्षियों के लिए व्याधा कप (वधकरनेवाला) है ॥ ३०॥ इति श्रीरामचरितमानसे सकल कलिकलुष विध्वंसने विशुद्ध सन्तोष सम्पादना नाम चतुर्थः सोपानः समाप्तः इस प्रकार समस्त कत्तिके पातक को ध्वस्त करनेवाला श्रीरामचतिमानस में विशुद्ध सन्तोष-सम्पादन नामवालो चतुर्थ सोपान समाप्त धुआ। शुभमस्तु-मङ्गलमस्तु 1 ,