पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/८५

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रामचरित मानस । उभय अगम जुग सुगम नाम तैं। कहउँ नाम बड़ ब्रह्म राम तँ व्यापक एक ब्रह्म अबिनासी । सत चेतन धन आनँद रासी ॥३॥ दोनों ब्रह्म दुर्गम हैं, किन्तु नाम से दोनों सहज में प्राप्त होते हैं, इसी से मैं परनल और श्रीरामचन्द्रजी से नाम को घड़ा करता है। जो ब्राह्म सर्वव्यापक, अद्वितीय, माननीय, चैतन्य और निरन्तर श्रानन्द की राशि है ॥३॥ ब्रह्म और रामचन्द्रजी से राम-नाम के बड़े होने का समर्थन यह कह कर करना कि निर्गुण सगुण दोनों ब्रह्म की प्राप्ति दुर्गम है, परन्तु नाम के स्मरण से दोनों सुगम होते हैं 'काव्यलिश अलंकार है। अस प्रभु हृदय अछत अबिकारी । सकल जीव जग दोन दुखारी ॥ नाम निरूपन नाम जतन ते । सोउ प्रगदत जिमि मोल रतन तें ऐसे निर्विकार ईश्वर के हृदय में रहते हुए संसार के समस्त जीव दीन और दुखी हैं। नाम के निदर्शन (प्रकट करने का कार्य) और नाम के प्रयत्न से वह भी कैसे प्रकट होता है, जैसे रत्न से मूल्य प्रत्यक्ष होता है || चौपाई के पुर्वार्द्र में निर्विकार आनन्द की राशि परमात्मा प्राणियों के हृदय में विद्यमान हैं, फिर भी जीवों का दुखी रहना 'विशेषोक्ति और विरोधाभास' का सन्देहसार है। उत्त. रार्द्ध में पहले कहा कि नाम के निरूपण और नाम के यान से वह ( ब्रह्मानन्द ) प्रकट होता है, इस यात का विशेष से समता दिवाना कि जैसे रत्न से माल जाहिर होता है 'उदाहरण अलंकार' है। दो-निरगुन ते एहि माँति बडु, नाम प्रभाउ अपार । कहउँ नाम बड़ राम तें, निज विचार अनुसार ॥२३॥ इस तरह निर्गुण ब्रह्म से नाम का प्रभाव बहुत ही बड़ा है । अब जिस प्रकार रामचन्द्रजी से नाम बड़ा है, वह अपनी समझ के अनुसार कहता हूँ ॥२३॥ उपमेय ब्रह्म और रामचन्द्रजी से उपमान राम नाम को यद कर जताना द्वितीय प्रतीप अलंकार' है। चौ-राम भगत हित नर तनु धारी । सहि सङ्कट किय साधु सुखारो॥ नाम सप्रेम जपत अनयासा । भगत होहि मुद मङ्गल बासा ॥१॥ रामचन्द्रजी ने भक्तों की भलाई के लिए शरीरधारी हो सकट सह कर सज्जनों को सुली किया । नाम को प्रेम के साथ जपने से विमा परिश्रम ही भक्तजन आनन्द और महल राम एक तापस तिय तारी। नाम कोटि खल कुमति सुधारी ॥ रिषि हित राम सुकेतुमुक्षाको। सहित सेन सुत कीन्ह बिबाकी ॥२॥ रामचन्द्रजी ने एक तपस्वी की स्त्री (अहल्या )का उद्धार किया और नाम ने करोड़ों खलों को दुष्ट-घुद्धि (रूपी स्त्री) को अच्छे मार्ग पर लगा दिया । रामचन्द्रजी ने मुनि के