पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/८६

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प्रथम सोपान, बालकाण्ड । कल्याणार्थ सुकेतु राक्षस को कन्या (ताड़का) को उसकी सेना और पुत्र के सहित निःशेष "(विध्वंस) किया ॥२॥ एक तपस्विनी को तार देना कोई विशेषता नहीं, नाम ने करोड़ों दुष्टों की कुबुद्धि कपिणी स्त्री को सुधार दिया। यहाँ वाच्यार्थ व्यंगार्थ बराबर होने से तुल्यप्रधान गुणो-भूत व्यङ्ग है। सहित दोष-दुख दास दुरासा । दलइ नाम जिमि रबि निसि नासा ॥ भञ्ज राम आपु भवचापू। भव-भय-अञ्जन नाम-प्रतापू .॥३॥ भको के दोष, दुस सहित बुरी तृष्णा को नाम कैसे संहार करता है, जैसे सूर्य रात्रि का नाश करते हैं। रामचन्द्र जी ने स्वयम् शिवजी के धनुष का खण्डन किया और नाम के प्रभाव ने संसार के भयों को चूर चूर कर दिया ॥३॥ दंडक बन प्रभु कीन्ह सुहावन । जन-मन-अमित नाम किय पावन ॥ निसिचर-निकर दले रघुनन्दन । नाम सकल-कलि-कलुष निकन्दन ॥४॥ प्रभु रामचन्द्रजी ने दण्डक वन को सुहावना किया और नाम ने असंख्यों भक्तों के मन को पवित्र किया। रघुनाथजी ने राक्षसों के झुण्ड का विध्वंस किया और नाम ने कलियुग के सारे पापों का नाश कर डाला ॥४॥ दण्डक की कथा आरण्यकाण्ड में १२ दोहे के आगे : वी चौपाई के नीचे देखो। दो०-सबरी गीध सुसेवकनि, सुगति दीन्हि रघुनाथ । नाम उधारे अमित खल, बेद बिदित गुन-गाथ ॥२४॥ शवरी और गिद्ध आदि अच्छे सेवकों को रघुनाथजी ने मोक्ष दिया और नाम ने असंख्यों दुष्टों का उद्धार किया, जिसके गुणों की कथा वेदों में प्रसिद्ध है ॥२४॥ शवरी की कथा श्रारण्यकाण्ड में ३४ से ३६ दोहे पर्यन्त और गिद्ध की ३० से ३२ दोहे 'तक देखो। चौ०-राम सुकंठ बिभीषन दोज । राखे सरन जान सब कोऊ ॥ नाम गरीब अनेक निवाजे । लोक बेद बर बिरद बिराजे ॥१॥ रामचन्द्रजी ने सुग्रीव और विभीषण दोनों को शरण में रक्खा, यह सब कोई जानते हैं। नाम ने अपार गरीयों पर मिहरबानी की, जिसकी उत्तम मामवरी संसार और वेदों में विराजमान है ॥१॥ 'जान सब को इस वाक्य में स्वयं लक्षित व्यङ्ग है कि दोनों को स्वार्थ के लिए शरण में रक्खा, किन्तु नाम ने असंखयों दरिद्रों पर नि:स्वार्थ दया की । सुग्रीव की कथा किष्किन्धा काण्ड में चौथे दोहे से ११ व दोहे के नागे तीसरी चौपाई पर्यन्त और विभीषण को कथा सुन्दर काण्ड में ११ से ४४ दोहे तक देखो। .