पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/८७७

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८०४ रामचरित मानस । २४ . दो-देखि बुद्धि-बल-निपुन कपि, कहेउ जानकी जाहु । रघुपति-घरन हृदय धरि, तात मधुर फल खाहु ॥१७॥ हनुमानजी को बुद्धि और बल में कुशल देखकर जानकीजी ने कहा-हे तात ! जाओ, रघुनाथजी के चरणों को हृदय में रख कर मीठे फल स्वांनी ॥ १७ ॥ चौ०-चलेउ नाइ सिर पैठेउ बागा। फल खायेसि तरु तारइ लागा ॥ रहें तहाँ बहु भट रखवारे । कछु मारेसि कछु जाइ पुकारे ॥१॥ तब हनुमानजी-सिर नवा कर चले और बाग में घुस गये, फल खा कर पेड़ों को तोड़ने लगे । वहाँ बहुत से वीर रक्षक थे, कुछ को मार डाले और कुछ रक्षकों ने जा कर प्रतिकार के लिये जिलाहट मचाई ॥१॥ नाथ एक आवा कपि भारी। तेहि असोकबाटिका उजारी ॥ खायेसि फल अरू चिटप उजारे । रच्छक मर्दि मर्दि महि डारे ॥२॥ उन राक्षसों ने कहा-हे नाथ ! एक भारी बन्दर पाया है, उसने अशोकवाटिका को उजाड़ डाला । फल खाया और वृक्षों को उखाड़ कर फेक दिया, रखवारों को मल मल कर धरती में गिरा दिया ॥२॥ सुनि रावल पठये भट नाना । तिन्हहिँ देखि गर्जेउ हनुमाना । सब रजनीचर कपि सङ्घारे । गये पुकारत कछु अधमारे ॥३॥ सुन कर रावण ने विविध वीरों को भेजा, उन्हें देख कर हनूमान जी गर्ने । पवनकुमार ने सघ राक्षसों का संहार कर डाला, कुछ अधमारे पुकारते हुए गये ॥ ३॥ पुनि पठयेउ तेहि अछयकुमारा । चला सङ्गः लै सुमट अपारा॥ आवत देखि बिटप गहि तर्जा । ताहि निपाति महाधुनि गर्जा uen फिर उसने अक्षयकुमार को भेजा, वह अपार योद्धाओं को साथ लेकर चला। उसे आते देख कर हाथ में वृक्ष ले कर डाँटते हुए (हनुमानजी) झपटे और उसका संहार कर बड़े जोर से गजें ॥४॥ दो०-कछु मारेसि कछु मर्देसि, कछु मिलयेसि धरि धूरि । कछु पुनि जाइ पुकारे, प्रभु मर्कट बल-भूरि ॥१८॥ कुछ को मार डाले, कुछ को पीस डाले और कुछ को पकड़ कर धूल में मिला दिये। फिर कुछ राक्षसों ने जाकर पुकार मचाई कि-राजन् ! वह बन्दर बड़ा बलवान है (उसने सेना सहित अक्षयकुमार को मार डाला!)॥१॥ चौ०-सुनि सुत बध लकैस रिसाना । पठयेसि मेघनाद बलवाना ॥ मारेसि जनि सुत बाँधेसु ताही । देखिय कपिहि कहाँकर आही ॥१॥ पुत्र का वध सुन कर लकेश्वर क्रोधित हुआ और बलवाने मेघनाद को भेजा । उसने कहा हे पुत्र ! उसको मारना मत; बाँध लेना, देखू तो कहाँ का बन्दर है ? ॥१॥