पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/८७८

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दौड़े ॥२॥ पञ्चम सोपान, सुन्दरकाण्ड । ६०५ चला इन्द्रजित अतुलित्त जोधा । बन्धु निधन सुनि उपजा क्रोधा ॥ कपि देखा दारुन भट आवा । कटकटाइ गर्जा अरु धावा ॥२॥ इन्द्रजीत को भाई का नाश सुन कर क्रोध उत्पन्न हुआ, वह बेशुमार वीयें को साथ ले कर चला । हनूमानजी ने देखा कि इस बार विकट योद्धा पाया है, वे कटकटा कर गर्जे और अति बिसाल तरु एक उपारा । बिस्थ कीन्ह लड्लेसकुमारा। रहे महाभट ताके सहा । गहि गहि कपि मर्द निज अङ्गा ॥३॥ एक बहुत बड़ा वृक्ष उखाड़ लिया, और उसे चला फर लंकेशकुमार-मेघनाद को बिना रथ के कर दिया। उसके साथ में पड़े बड़े योद्धा थे, उन्हें पकड़ पकड़ कर हनूमानजी अपने शरीर में मल देते हैं।.॥ तिन्हहिं निपाति ताहि सन बाजा । भिरे जुगल मानहुँ गजराजा ॥ मुठिका मारि चढ़ा तरु जाई । ताहि एक छन मुरछा आई ॥४॥ उन राक्षस भटो का नाश कर मेघनाद से भिड़ गये, पेसा मालूम होता है मानों दो मत- वाले हाथी लड़ते हो। घुला मार कर पेड़ पर जा चढ़े, उसको एक क्षण भर मूछो भागई ॥४॥ उठि बहोरि कीन्हेसि बहु माया । जीति न जाइ प्राउजन-जाया ॥५॥ फिर उठ फर उसने बहुत सी माया की, परन्तु पवनकुमार जीवे नहीं जाते हैं ॥५॥ दो-ब्रह्म-अस्त्र तेहि साधा, कपि मन कीन्ह विचार। जी न ब्रह्म-सर मानउँ, महिमा मिटइ अपार ॥१९॥ उसने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया. तवं हनूमानजी ने मन में सोचा कि यदि ब्रह्म-बाण को नही मानता हूँ तो इसकी अपार महिमा नष्ट हो जायगी ॥१॥ चौ-ब्रह्मबान कपि कहँ तेहि मारा। परतिहु बार कटक सङ्घारा ॥ तेहि देखा कपि मुर्छित भयऊ । नागपास बाँधेसि लेइ गयऊ ॥१॥ उसने हनूमानजी को ब्रह्मवाण मारा, उन्होंने धरती पर गिरते हुए भी राक्षसी बल का नाश किया। मेघनाद ने देखा कि बन्दर मर्छित हो गया, तब नागपाश से बाँध कर राजसभा में ले गया ॥१॥ हनुमानजी के बन्धन से पार्वतीजी को आश्चर्य हुआ। उन्हों ने शङ्करजी से पूछा कि-स्वामिन् ! हनूमान मेघनाद के बंधुये हो गये १ वे तो त्रिलोकी के अन्न शस्त्र से मुक्त हैं, फिर मेघनाद ने कैसे बाँध लिया? जासु नाम जपि सुनहु भवानी। भव-बन्धन काटहिं नर ज्ञानी । तासुदूत कि बन्ध तर आवाः । प्रभु कारज लगि कपिहि बंधावा ॥२॥ शिवजी कहते हैं-हे भवानी ! सुनो, जिनके नाम को जप कर ज्ञानी मनुष्य संसार