पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/८८०

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००७ पञ्चम सोपान, सुन्दरकाण्ड । मानर्जी ने इस तरह दिया है । कि दूसरे प्रश्न को प्रथम और पहले को दूसरे में परिवर्तित कर के शेष का.उत्तर यथाक्रम कह चले हैं गढ़ोत्तर और मंगक्रम यथासंख्य का संकर है। जाके बल विरचि हरि ईसा । पालत सृजत हरत दसखोला । जा बल सीस घरत सहसानन । अंडकोस समेत गिरि कानन ॥३॥ हे दशानन ! जिन के बल से ब्रह्मा, विष्णु, महेश वष्टि को उत्पन्न करते. पालते और संहार करते है। जिन के बल से शेषनाग पर्वत और वन के सहित धरती को मस्तक पर रखते हैं | धरइ जो विविध देह सुर-त्राता । तुम्ह से सठन्ह सिखावनदाता ॥ हर-कोदंड कठिन जेहि मज्जा । तोहि समेत नृप-दल मद गज्जा ॥१॥ जो देवताओं के रक्षार्थ तरह तरह से शरीर धारण करते हैं और तुम सरीखे दुष्टों को शिक्षा (दंड) ऐनेवाले हैं। जिन्होंने कठोर शिव-धनुष को तोड़ डाला और तुम्हारे सहित राजाओं के समूह का अभिमान चूर चूर कर दिया ॥४॥ खर दूषन निखिरा अरु बाली । बधे सकल अतुलित बल-साली ॥२॥ जिन्हों ने अप्रमाण बलशाली खर, दूपण, त्रिशिरा और बाली आदि सब का वध किया है ॥५॥ दो--जाके बल लवलेस तैं, जितेहु चराचर झारि । तासु दूत मैं जा करि, हरि आनेहुं प्रिय नारि ॥२१॥ जिनके लवलेशमान बल से तुम ने सम्पूर्ण चराचर को जीत लिया है । मैं उन्हीं का दूत हूँ, जिनकी प्यारी स्त्री को तू हर ले आया है ॥२१॥ इनूमानजी ने सीधे शब्दों में यह नहीं कहा कि मैं रामचन्द्रजों का दूत हूँ। इस बात को रचना के साथ घुमा कर स्वामी के महत्व और करनी को जता कर परिचय देना प्रथम पर्यायाक्ति अलंकार' है। ऊपर की तीसरी चौपाई से लेकर इस दोहे पर्यन्त यही अलंकार है। तू कौन है ? और किस के वल से वाग नसाया? रावण के इन दोनों प्रश्नों का उत्तर हो चुका चौ०--जानउँ मैं तुम्हारि प्रभुताई। सहसबाहु. सनः परी लराई ॥ समरबालि सन करिंजस पावा।सुनिकपि बचन बिहँसि बहरावा॥१॥ मैं तुम्हारी प्रभुता को जानता हूँ तुम से सहस्रार्जुन से लड़ाई हुई थी। बालो से युद्ध करके तुम ने कीर्ति पाई है। हनूमानजी की बात सुन कर रावण ने उसे हँसी में बहला दिया ॥१॥ हनूमानजी के कथन में प्रत्यक्ष तो प्रशंसा प्रकट हो रही है, परन्तु विचारने से निन्दा सूचित होती है, क्योंकि यह सहस्रार्जुन और बाली से युग में हार गया था। यह 'व्याजनिन्दा क