पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/८८९

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रामचरित मानस । उनकी कुशल पूछी, अगदजी ने कहा-राजन् ! आपके चरणों को देख कर सब कुशल है, गम. चन्द्रजी की कृपा से बहुत पढ़कर कार्य हुआ १२५ कुशल शब्द दोधार आया, पर अर्थ भिन्न होने से यमक अलंकार है। 'विशेष' शब्द में ध्वनि है कि सीताजी की खबर मिलने के अतिरिक्त शत्रु के असंख्यों प्रमुख योया मारे गये, उसको राजधानी भस्मीभूत हुई और उसे पुत्रशोक का भीषण दुःख भोगना पड़ा। सभा की प्रति में मिले सबहि अति प्रेम कपीसा पाठ है। नाथ काज कीन्हेउ हनुमाना । राखे सकल कपिन्ह के प्राना ॥ सुनि सुग्रीव बहुरि तेहि मिलेऊ । कपिन्ह सहित रघुपति पहँ चलेऊ ॥३॥ हे नाथ हनूमानजी ने कार्य किया और सम्पूर्ण वन्दरों के प्राण बचाये । यह सुन कर सुग्रीव फिर हनुमानजी से मिले और वानरों के सहित रघुनाथजी के पास चले ॥ राम कपिन्ह जन आवत देखा ! किये काज मन हरष बिसेखा ॥ फटिकसिला बैठे दोउ भाई। परे सकल कपि चरनन्हि जाई ॥४॥ जब रामचन्द्रजी ने वानरों को श्राते देखा, तब वे समझ गये कि बन्दरों के मन में बड़ी प्रसन्नता है, उन्हों ने कार्य किया। दोनों भाई स्फटिक की चट्टान पर बैठे हैं, सब वानर जा कर चरणो में गिरे in दो०-प्रीति सहित सब भैंटे, रघुपति करुना पुज्ज। पूछी कुसल नाथ अच, कुसल देखि पद कजज ॥२६॥ दया की राशि रधुनाथजी प्रीति के साथ सब से मिले और उनकी कुशल पूछी। सुग्रीव ने कहा-हे नाथ ! अब भाप के चरण-कमलों को देख कर कुशल है ॥२६॥ बी-जामवन्त कह सुनु रघुराया । जा पर नाथ करहु तुम्ह दाया ताहि सदा सुभ कुसल निरन्तर। सुर नर मुनि प्रसन्न ता ऊपर ॥१॥ जाम्बवान ने कहा-हे स्वामिन् रघुनाराजी ! सुनिये, जिस पर आप दया करते हैं उसका लदा कल्याण और निरन्तर कुशल हैं। देवता, अनुष्य और मुनि उस पर सब प्रसन्न होते हैं । सोइ बिजई बिनई गुन-सोगर । तासु सुजस त्रय लोक उजागर ॥ प्रभु की कृपा भयउ सब काजू । जनम हमार सुफल मा आजू ॥२॥ वहीं विजेता, नन; नीतिमान और गुणों का समुद्र है, उसी का सुन्दर यश तीनों लोकों में 'विवयात है (जिस पर आपकी देखा है) 'स्वामा की कृपा से सब कार्य हुना, हमारा जन्म नाज सफल हो गया ॥२॥ ?