पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/८९४

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६२१ . पचम सोपान, खुन्दरकाण्ड । दो-ताकह प्रभु कछु अगम नहि, जापर तुम्ह अनुकूल । तव प्रमान बड़वानलहि, जारि सकइ खलु तूल ॥३३॥ हे स्वामिन् ! जिल पर भाप स है उसको कुछ भी दुर्लभ नहीं है। आप के प्रताप से निश्चय ही कई पड़वानल जला सकती है ॥३३॥ कई जलनेवाली वस्तु है और बड़वानल अलानेवाला प्रभु प्रताप से रूई का गुण बड़वा नल में और बड़वाना का गुण कई में स्थापन करना 'द्वितीय असहति अलंकार' है। चौ-नाथ भगति अति सुखदायनी। देहु कृपा करि अनपायनी॥ सुनि प्रभु परम सरल कपि बाली । एवमस्तु त कहेउ भवानी ॥१॥ हे नाथ! कृपा करके अत्यन्त सुख देनेवाली अपनी निश्चल-भक्ति मुझे दीजिये। शिवजी कहते हैं- हे भवानी। हनूमान की अत्यन्त सीधी वाणी सुनकर तप प्रभु रामचन्द्र ने कहा ऐसा ही हो अर्थात् यह बरदान हमने तुम्हें दिया ॥१॥ उमा राम सुनाव जेहि जाना । ताहि अजन तजि भाव न आना ॥ यह सम्बाद जासु उर आवा। रघुपति-चरन-भगति साइ पावा ॥२॥ हे उमा जिसने रामचन्द्रजी के स्वभाव को जान लिया उसको भजन छोड़ कर और कुछ नहीं अच्छा लगता। यह सम्बाद जिसके प्रदय में श्रावेगा, वह रघुनाथजी के चरणों की भक्ति (प्रीति) पावेगा ॥२॥ सुनि प्रभु बचन कहहिं कपि सुन्दा । जय जय जय कृपाल सुखकन्दा॥ तब रघुपति कषिपतिहि बोलावा । कहा चलइ कर करहु बनावा॥३॥ प्रभु के वचन सुन कर वानर वृन्द कह रहा है कि पालु सुख के बरसानेवाले मेध रामचन्द्रजी की जय हो, आय हो। तब रघुनाथजी ने सुग्रीव को बुलाया और कहा कि चलने की तैयारी करो ॥३॥ अब बिलम्ब केहि कारन कीजै । तुरत कपिन्ह कह आयसु दीजै ॥ कौतुक देखि सुमन बहु करणी । न तँ भवन चले सुर हरणो ॥४॥ अब किस कारण देरी की जाय ? तुरन्त वानरों को साझा दीजिये। यह कुतुहल (आनन्द मूलक खेत) देख कर देवता प्रसन्न हो आकाश से बहुत से फूलों की वर्षा करके अपने अपने स्थानों को चले ॥४॥ दोकपिपति बेगि बोलाये, आये यूथप यूथ । नाना बरन अतुल बल, बानर भालु बरूथ ॥३४॥ सुग्रीव ने शीघ्र ही यूथपतियों को बुखाया, वे झुण्ड के झुण्ड भाये। अनेक रह के अप्रमेय बलवाले बन्दर और भालुओं का समुदाय है ॥४॥