पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/९१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

८४१ ६१ पंजुम सोपान, सुन्दरकाण्ड । जिन्ह के जीवन कर रखवारा । भयउ मृदुल चित्त सिन्धु बेचारा ।। कहु तपसिन्ह के बात बहारी। जिन्ह के हृदय त्रास अति मोरी ॥४॥ जिनके जीवों का रक्षक कोमल-हदय बेचाय सिन्धु हो रहा है, फिर उन तपस्वियों की बात कहै, जिनके मन में मेरा बहुत बड़ा डर है ॥४॥ दो की भइ भेंट कि फिरि गये, लवन सुजस सुनि मार । कहसिन रिपु दल तेज बल, बहुत चकित चित तार ॥५३॥ भेट हुई या फि कान से मेरा सुयश सुन कर लौट गये ? शत्रु का तेज और सेना का बल कहता क्या नहीं, तेरा चित्त बहुत क्षकपकाया हुया है ! ॥५३॥ यहाँ रावण ने शुक से पाँच प्रश्न किया है। (१) अपनी कुशल कह । (२) विभीषण का समाचार कह । (३) वानर-भालुओं की सेना का बल । (४) शनु तपस्वियों का तेज (५) भेंट हुई या लौट गये । शुकने पहले दूसरे प्रश्न का और पहले का उत्तर संक्षेप में दिया, फिर कम से ३,४,५ का उत्तर विस्तार से दिया। चौ०-नाथ कृपाकरि पूछेउ जैसे । सानहु कहा क्रोध तजि तैसे ॥ मिला जाइ जब अनुज तुम्हारा । जातहि लाल तिलक तेहि लारा ॥१॥ शुक ने कहा-हे नाथ जैसे कृपा करके आपने पूछा, वैसे क्रोध त्याग कर मेरा कहना मानिये । जव भाप के छोटे भाई जा कर मिले, जाते ही रामचन्द्रजी ने उन्हें राजतिलक कर दिया ॥१॥ तिलक सारगे से रावण के वध करने की आदता व्यजित करना पड़ है। यह दूसरे प्रश्न का उत्तर है नीचे की चौपाई में पहले प्रश्न का उतर देता है। रावन दूत हलहि सुनि काला । पिन्ह बाँधि दीन्हे दुख नाना ।। खवन नासिका काठइ लागे । राम सपथ दीन्हे हम त्यागे ॥२॥ हम लोगों को रावण के दूत कान सुन कर वन्दरों ने बाँध कर माता तरह के दुःख दिये। कान और नाक काटने लगे, मैं ने रामचन्द्रजी का सौगन्द दी, तब हमें छोड़ा ॥२॥ कहने का तात्पर्य यह कि मेरी कुशन भाप या पूछते हैं ? किसी तरह प्राण बच गये। पूछेउ नाथ राम कटकाई । बदन कोटिसत बरनि न जाई। नाना बरन भालु कषि धारी । बिकदालन बिसाल भय-कारी ॥३॥ हे नाथ! आपने रामचन्द्रजी की सेना का हाल पूछा, वह असंख्यों मुखों से नहीं वणन किया जा सकता (फिर एक मुँह से मैं कैसे कह सकता हूँ १) अनेक रन के भालु और बन्दरों की फौज है, उनके भयङ्कर मुख बड़े ही डरावने हैं ॥३॥ जेहि पुर दहेउ हतेउ सुत तारा । सकल कपिन्ह महँ तेहिबल थोरा ॥ अमित नाम भट कठिन कराला । अमित नाग बल बिपुल बिसाला || जिस बन्दर ने आप के पुत्र को मारा और नगर जलाया, उसफा पल समस्त बन्दरों में