पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/९२०

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पञ्चम सोपान, सुन्दरकाण्ड । ८०७ प्रमु अल कीन्ह लोहि लिख दीन्ही । मरजादा पुनि तुम्हरिय कीन्ही ॥ ढोल गँवार सूद्र पसु नारी । सकल ताड़ना के अधिकारी ॥३॥ स्वामी ने अच्छा किया जो मुझे शिक्षा दी, फिर मेरी मावा भी तो आप ही की बनाई है। ढोल , गवार. शद, पशु और स्त्री ये सभी ताड़ना के अधिकारी हैं ॥३॥ समुद्र ने पहले विशेष बात कही कि स्वामी ने मुझे शिक्षा दे कर अच्छा किया। फिर उसके समर्थन में सामान्य बात कहता है कि मेरो मर्यादा भी तो श्राप ही की बनाई है। पर इतने से भी सन्तुष्ट न है कर विशेष उदाहरण से समर्थन करता है | ढोल आदि ताड़ना ही के अधिकारी हैं 'विकस्वर अलंकार है। प्रभु प्रताप मैं जांब सुखाई । उत्तरिहि कटक न मारि बड़ाई ॥ प्रभु आज्ञा अपेल लुति गाई । करउ सा'बेगि जो तुम्हहिँ सुहाई॥४॥ स्वामी के प्रताप से मैं सूख जाऊँगा और सेना उतर जायगी, पर इसमें मेरी बड़ाई (मर्यादा की रक्षा) नहीं है । प्रभु की शाशा को वेदों ने अटल कही है जो ओप को अच्छा लगे वह कीजिये ॥४॥ मेरे लिये श्राप की आशा है कि मैं मय्यादा का त्याग न कसै अर्थात् न सुखू और न उमई अपनी सीमा पर स्थिर रहूँ। यह लक्षणामूलक अगूढ़ व्या है। दो०-सुनत बिनीत बचन अति, कह कृपाल मुसुकाइ। जेहि बिधि उत्तरइ कपि कटक, तात सो कहहु उपाइ ॥६॥ के अत्यन्त नन वचन सुनते ही कृपालु रामचन्द्रजी ने मुस्कुरा कर कहा कि हे तात! जिस प्रकार यानरी सेना उतरे षही उपाय कहो ॥५॥ चौ०-नाथ नील नल कपि दोउ माई। लरिझाई रिषि आसिम पाई ॥ तिन्ह के परस किये गिरि मारे । तरिहहि जडधि प्रताप तुम्हारे १॥ हे नाथ ! नील और नल वानर दोनों भाई लड़कपन में ऋषियों से आशीर्वाद पाया है। उनके छूने से और श्राप के प्रताप से बड़े बड़े पर्वत अगाध जल पर उतरायगे ॥॥ लड़कपन में नील नल दोनों भाई ऋषियों के स्नान के पत्थर और सालिग्राम को गहरे जल में फेंक दिया करते थे। जिससे मुनियों को बड़ा कष्ट होता था। उन्होंने शाप दिया कि जो ऐसी दुष्टता करता है उसके छूने ले पत्थर पानी पर उतरा जायगे। उस शाप रूपी दोष को समुद्र गुण रूपं आशीर्वाद कहता है। मैं पुनि उर धरि प्रभु प्रभुताई । करिहउँ बल अनुमान सहाई ॥ एहि बिधि नाथ पयोधि बँधाइय। जेहि यह सुजस लोक तिहुँ गाइय ॥२॥ फिर मैं भी स्वामी की प्रभुता हृदय में रख कर अपनी शक्ति के अनुसार सहायता करूंगा। हे नाथ ! इस तरह समुद्र पर पुल बंधवा दीजिये, जिसमें यह सुन्दर कीर्चि तीनों लोकों में गाई जाय ॥२॥