पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/९२२

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श्रीगणेशाय नमः श्रीजानकीवल्लभो विजयते श्रीमद् गोस्वामि तुलसीदास कृत रामचरितमानस पाठ-पान लकाकाण्ड लण्या-वृत्त। ' राम कामारिसेव्यं भवभयहरणं कालमत्तेमसिंहम् । योगीन्द्र ज्ञानगम्यं गुणनिधिमजिवं निर्गुणं निर्विकारस् ॥ मायातील सुरेश खलनधनिरतं ब्रह्मवन्दैकदेवम् । बन्देकन्दानदातं सरसिजनयनं देवमुर्वीशरूपम् ॥१॥ जो रामचन्द्र शिवजी से सेक्ति, संसारी भय के हरनेवाले, काल रूपी मतवाले हाथी के सिंह, योगिराजों को शान द्वारा प्राप्त होनेवाले, गुणों के भण्डार, अजेय, गुणों से रहित, निर्दोष, माया से पृथक, देवताओं के स्वामी, सुष्टों के संहार में तत्पर, ग्रामण वृन्द के प्रधान देवता, मेघ के समान सुन्दर, कमल के सदृश नेत्रवाले और पृथ्वी के मालिक हैं उन भगवान् की मैं वन्दना करता हूँ॥१॥ शार्दूलविक्रीड़ित-वृत्त । शङ्खन्दासमतीवसुन्दरतनुं शार्दूलचाम्बरम् । कालव्यालकरालभूषणधर गङ्गाशशाङ्क प्रियम् । काशीश कलिकल्मषौघ शमनं कल्याण कल्पद्रुमम् । नौमीय गिरिजापतिं गुणनिधि कन्दर्पह शङ्करम् ॥२॥ शह और चन्द्रमा के समान कान्तिवाले, अत्यन्त सुन्दर शरीरधारी, सिंह का धर्म पहने १०७