पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/९२३

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. eyo रामचरित मानस । हुए, भीषण काल सपो सपो के भूषण धारण किये, गहा और चन्द्रमा पर प्रेम रखनेवाले, काशीपति, कलियुग के पाप-समूह को नसानेवाले, कल्याण के कल्पवृक्ष, गुण के राशि, काम- देव को भस्म करनेवाले और पार्वती के स्वामी शङ्करजी को मैं बार बार प्रणाम करता हूँ ॥२॥ शुटका में गुणनिधि श्री शङ्करं मन्मथारिम् पाठ है । पर अर्थ दोनों पाओं का एक ही है अनुष्टुप-वृत्त । यो ददाति सतां शम्भुः कैवल्यमपिदुर्लभम् । खलानां दण्डयोसौ शङ्करः श तनोतु माम ॥३॥ जो शिवजी सत्पुरुषों को निश्चय ही दुर्लभ मोक्ष देते हैं और जो खलो को दण्ड देनेवाले हैं वे शङ्कर मेरा कल्याण करें॥३॥ दो-लव निमेष परमानु जुग, बरण - कलप सर चंड । भासि न मन तेहि राम कह; काल जासुः .. कोदंड तुलसीदासजी कहते हैं-हे मन ! जिनका काल धनुष है और लव, निमेष, परमायु,' वर्ष, युग तथा कल्प पर्यन्त तीक्ष्ण वाण हैं, उन रामचन्द्र जी का तू क्यों नहीं भजन करता ॥ यहाँ धनुष उपमेय और काल उपमान एवम् वाण उपमेय तथा लव से ले कर कल्प. पर्यन्त अर्थात् छोटे से छोटा और बड़े से बड़ा समय उपमान है। दोनों में पूर्णरूप से एक रूपता वर्णन करना 'समप्रभेदरूपक अलंकार और उल्लेख' की संसृष्टि है। स्त्रि के पलक गिरने का नाम है लव, ६० लव, का एक निमेष, ६० निमेष का परमाणु, ६० परमाणु का पल, ६० पल की घड़ी, ६० घड़ी का दिन रात, ३० दिन रात का महीना, १२ महीने का वर्ष होता है। इसी वर्ष से १७ लाख २८ हजार वर्ष सत्ययुग, १२ लाख ६६ हजार वर्ष अंता, लाख ६४ हजार वर्ष वापर और ४ लाख ३२ हजार वर्ष कलियुग को अवधि है । ये चारों युग हज़ार बार पीतते हैं तब एक कल्प होता है और यही कल्प ब्रह्मा का एक दिन है। अपने दिन से ३० दिन के माल और १२ मास के वर्ष से जब १० वर्ष ब्रह्मा के होते हैं, उसको महाप्रलय या महाकल्प कहते हैं। सोल-सिन्धु बचन सुनि राम, सचिव बोलि प्रभु अस कहेउ । अब बिलम्ब केहि काम, करहु सेतु उत्तरइ कटक ॥ समुद्र के वचन सुन कर रामचन्द्रजी ने मन्त्रियों को बुला कर ऐसा कहा- -अब देरी किस काम की है, सेतु की रचना करो जिस से कटक उत्तरे।।. सुनहु भानु-कुल-केतु, जामवन्त करजारि कह । नाथ नाम तव सेतु, नर चढ़ि भवसागर तरहि । जाम्बधान हाथ जोड़ कर कहने लगे है सूर्य कुल केपताका स्वामिन् ! मुनिए, आप का नाम ही सेतु है, जिस पर चढ़ कर मनुष्य संसार सागर के पार उतर जाते हैं।