पृष्ठ:रामचरितमानस.pdf/९३५

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रामचरित मानस । ८६२ दो०-एहि बिधि करुना-सील गुन, धाम राम आसीन । ते नर धन्य जे ध्यान एहि, रहत सदा लयलीन ॥ इस तरह करुणा, शील और गुणों के स्थान रामचन्द्रजी विराजमान हैं । वे मनुष्य धन्य हैं, जो इस ध्यान में सदा लपलीन रहते हैं। पूरब-दिसा बिलोकि मनु, देखा उदित्त भयङ्क ॥ कहत सबहि देखहु ससिहि, मृगपति सरिस असङ्क ॥११॥ प्रभु रामचन्द्रजी ने पूर्व दिशा की ओर देखा, चन्द्रमा को निकला हुआ देख कर सब से कहने लगे-देखो, चन्द्रमा सिंह के समान निर्भय है ॥११॥ चौ०-पूरब दिसि गिरि-गुहा निवासी । परम प्रताप तेज बल रासी। अत्त-नाग-तम-कुरुम बिदारी । ससि केसरी गगन-चन-चारी ॥१॥ पूर्व दिशा रूपी पवत की गुफा का रहनेवाला अत्यन्त प्रतापी, तेजवान और बल की राशि है। अन्धकार रूपी मतवाले हाथी के मस्तक को विदी करके यह चन्द्रमा रूपी सिंह आकाश रूपी वन में विचरता है ॥२॥ चन्द्रमा पर सिंह का भारोप, पूर्व दिशा पर गिरि-गुहा का आरोप, घन पर प्रकाश का आरोप और अन्धकार पर मतवाले हाथी के कुम्भ का धारोपण करना 'परम्परित रूपक अलंकार' है । धिना इस परम्परा के रूपक की सिद्धि अर्थात् सिंह के निवास, प्रताप-पराक्रम . और विचरण श्रादि की एक रूपता न प्रकट होती। 'नाग' शब्द अनेकार्थी है। किन्तु सिंह के विरोध से केवल हाथी' के अर्थ की अमिधा पाई जाती है। कुछ लोग यहाँ एक और सपक दिखाने की चेष्टा करते हैं कि पूर्व दिशा निवासी चन्द्रमा, गिरि निवासी मैं और गुहा निवासी सिंह तीनों क्रमश: प्रताप, तेज, बल की राशि हैं। चन्द्रमा तम गज, मैं रावण रूपी गज, सिंह प्राकृत गज का मस्तक विदारण करनेवाला है, परन्तु वास्तव में इसे रूपक से कवि का उद्देश्य भिन्न है और इसमें अपने मुंह से रोमचन्द्रजी अपना प्रताप वर्णन करते हैं, यह सर्वथा प्रयुक्त है। बिथुरे नभ मुकुताहल सारा । निसि-सुन्दरी केर सिङ्गोरा ॥ कह प्रभु ससि मह मेचकताई। कहहु काह निज निज मति भाई ॥२॥ आकाश में फैले हुए तारागण मोती हैं, वे रात्रि रूपी सुन्दरी के शंगार हैं । चन्द्रमा में श्यामता के विषय में प्रभु रामचन्द्रजी ने कहा-भाइयो अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार कहो, वह क्या है ? ॥२॥ रात्रि पर सुन्दरी का आरोप इस लिये किया कि उसके श्रृंगार रूप तारागण पर गज- मोती का आरोप कर चुके हैं। कह सुग्रीव सुनहु रघुराई । ससि महँ प्रगट भूमि के झाँई । मारेउ राहु ससिहि कह कोई । उर महँ परी स्यामता साई ॥३॥ सुग्रीव ने कहा-हे रघुनाथजी ! सुनिये, चन्द्रमा में पृथ्वी की छोयो प्रकट हो रही है। किसी ने कहा-चन्द्रमा को राह ने मारा था. वही श्वामता हदय में पड़ी है ॥३॥